Thursday, December 18, 2025

मोबाइल हाथ में, इंसान अकेला क्यों? स्क्रीन ने कैसे छीन ली हमारी असली दुनिया

आज का इंसान पहले से कहीं ज्यादा “कनेक्टेड” है, लेकिन इसके बावजूद वह खुद को पहले से ज्यादा अकेला महसूस कर रहा है। मोबाइल फोन, सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म ने हमारी जिंदगी को आसान तो बनाया है, लेकिन इसके साथ एक चुपचाप बढ़ती समस्या भी सामने आई है, अकेलापन। सुबह आंख खुलते ही मोबाइल स्क्रीन और रात को सोने से पहले आखिरी नजर भी स्क्रीन पर टिक जाती है। इस लगातार स्क्रीन पर निर्भरता ने इंसानी रिश्तों की जगह वर्चुअल रिश्तों को दे दी है। सोशल साइंस से जुड़ी कई स्टडीज़ बताती हैं कि जब इंसान आमने-सामने बातचीत की जगह चैट, रील्स और लाइक्स तक सीमित हो जाता है, तो भावनात्मक जुड़ाव कमजोर होने लगता है। दिखने में भले ही व्यक्ति ऑनलाइन सक्रिय हो, लेकिन भीतर से वह खुद को अलग-थलग महसूस करने लगता है।

वर्चुअल बातचीत और मानसिक दूरी

विशेषज्ञ मानते हैं कि डिजिटल बातचीत असली मानवीय संवाद की भरपाई नहीं कर सकती। स्क्रीन के जरिए होने वाली बातचीत में चेहरे के भाव, आंखों की भाषा और स्पर्श जैसी भावनात्मक चीजें गायब हो जाती हैं। यही कारण है कि लंबे समय तक मोबाइल पर रहने वाले लोग धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियों से दूरी बनाने लगते हैं। परिवार के साथ बैठकर बात करने की जगह हर कोई अपने-अपने फोन में खोया रहता है। दोस्तों से मिलने के बजाय वीडियो कॉल या मैसेज को ही पर्याप्त मान लिया जाता है। यह स्थिति मानसिक रूप से व्यक्ति को कमजोर करती है और उसे ऐसा लगने लगता है कि उसके आसपास लोग होते हुए भी कोई उसका अपना नहीं है। यही भाव आगे चलकर तनाव, चिड़चिड़ापन और आत्मविश्वास की कमी का कारण बनता है।

रिश्तों पर पड़ता डिजिटल असर

मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल का असर सिर्फ व्यक्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि उसके रिश्तों पर भी साफ दिखाई देता है। पति-पत्नी, माता-पिता और बच्चों के बीच संवाद पहले की तुलना में कम हो गया है। हर कोई अपने डिजिटल स्पेस में व्यस्त है। जब रिश्तों में बातचीत कम होती है, तो गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं और भावनात्मक दूरी पैदा हो जाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि सोशल मीडिया पर दिखने वाली “परफेक्ट लाइफ” भी अकेलेपन की भावना को बढ़ाती है। लोग दूसरों की खुशहाल तस्वीरें देखकर खुद की जिंदगी को अधूरा समझने लगते हैं। इससे तुलना की भावना जन्म लेती है और व्यक्ति भीतर ही भीतर खुद को कमजोर महसूस करने लगता है।

समाधान की राह: संतुलन जरूरी

अकेलेपन की इस समस्या से निपटने के लिए डिजिटल जीवन और वास्तविक जीवन के बीच संतुलन बनाना बेहद जरूरी है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि मोबाइल का इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से किया जाए, न कि आदत के तौर पर। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, आमने-सामने बातचीत करना और सामाजिक गतिविधियों में शामिल होना मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। दिन में कुछ समय “डिजिटल डिटॉक्स” के लिए तय करना भी मददगार साबित हो सकता है। जब इंसान खुद को असली रिश्तों से जोड़ता है, तो उसे भावनात्मक सहारा मिलता है और अकेलेपन की भावना धीरे-धीरे कम होने लगती है। तकनीक हमारी मदद के लिए है, लेकिन अगर वही हमारे रिश्तों की जगह लेने लगे, तो यह चिंता का विषय बन जाता है।

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