राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर खुलकर अपनी राय रखते हुए समाज के सामने कई अहम सवाल खड़े कर दिए हैं। रविवार को एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति या कपल जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है, तो समाज कैसे चलेगा। उनके मुताबिक परिवार और शादी केवल शारीरिक संतुष्टि का साधन नहीं हैं, बल्कि समाज की बुनियादी इकाई हैं, जिन पर सामाजिक ढांचा टिका होता है। उन्होंने कहा कि परिवार वह पहली जगह है, जहां इंसान सामाजिक जीवन, अनुशासन और जिम्मेदारी निभाना सीखता है। मोहन भागवत के इस बयान के बाद लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक बार फिर देशभर में बहस तेज हो गई है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि अगर कोई शादी नहीं करना चाहता तो यह उसका व्यक्तिगत निर्णय हो सकता है, लेकिन अगर वह न शादी करना चाहता है, न संन्यास लेना चाहता है और न ही किसी तरह की जिम्मेदारी उठाने को तैयार है, तो ऐसी स्थिति में समाज का संतुलन कैसे बना रहेगा।
शादी, परिवार और परंपराओं को बचाने की बात
RSS प्रमुख ने अपने संबोधन में भारतीय समाज और उसकी परंपराओं का जिक्र करते हुए कहा कि परिवार केवल दो लोगों के साथ रहने की व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह पीढ़ियों को जोड़ने वाली एक मजबूत कड़ी है। उन्होंने कहा कि हमारे देश, समाज और धार्मिक परंपराओं की रक्षा तभी संभव है, जब परिवार व्यवस्था मजबूत रहे। मोहन भागवत ने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी बात किसी पर थोपने की नहीं है, बल्कि समाज के दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर कही गई है। उन्होंने कहा कि अगर कोई व्यक्ति विवाह नहीं करना चाहता, तो वह संन्यास का मार्ग भी चुन सकता है, जहां जीवन पूरी तरह त्याग और अनुशासन पर आधारित होता है। लेकिन यदि कोई इन दोनों विकल्पों को न अपनाकर केवल सुविधाजनक जीवन जीना चाहता है और किसी तरह की सामाजिक जिम्मेदारी से बचता है, तो यह प्रवृत्ति भविष्य में समाज के लिए चुनौती बन सकती है। उनके इस बयान को कई लोग भारतीय सामाजिक मूल्यों की पैरवी के तौर पर देख रहे हैं, तो कुछ इसे आधुनिक जीवनशैली पर सीधा सवाल मान रहे हैं।
कितने बच्चे हों, यह निजी सवाल लेकिन संकेत अहम
मोहन भागवत ने कार्यक्रम के दौरान बच्चों की संख्या को लेकर भी अपनी बात रखी, जिसे लेकर चर्चा और तेज हो गई है। उन्होंने कहा कि एक कपल के कितने बच्चे होने चाहिए, यह कोई सरकारी फॉर्मूला नहीं हो सकता। यह फैसला परिवार, दूल्हा-दुल्हन और समाज से जुड़ा हुआ मामला है। RSS प्रमुख ने बताया कि उन्होंने इस विषय पर डॉक्टरों और विशेषज्ञों से बातचीत की है। उनके अनुसार, अगर शादी अपेक्षाकृत कम उम्र में, यानी 19 से 25 वर्ष के बीच होती है और परिवार में तीन बच्चे होते हैं, तो इससे माता-पिता और बच्चों दोनों की सेहत बेहतर रहती है। उन्होंने मनोवैज्ञानिकों का हवाला देते हुए कहा कि तीन बच्चों वाले परिवारों में ईगो मैनेजमेंट बेहतर होता है और आपसी सामंजस्य सीखने का अवसर मिलता है। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि वह खुद अविवाहित हैं और इस विषय पर उनकी जानकारी विशेषज्ञों से मिली जानकारी पर आधारित है, न कि व्यक्तिगत अनुभव पर।
गिरती जन्म दर पर चेतावनी, भविष्य को लेकर चिंता
RSS प्रमुख ने अपने बयान में देश की जन्म दर पर भी गंभीर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि जनसांख्यिकी विशेषज्ञों के अनुसार, अगर जन्म दर तीन से नीचे चली जाती है, तो जनसंख्या घटने लगती है और यदि यह 2.1 से कम हो जाए, तो स्थिति खतरनाक हो सकती है। मोहन भागवत ने बताया कि फिलहाल भारत की औसत जन्म दर 2.1 के आसपास है, जिसमें बिहार जैसे राज्यों की बड़ी भूमिका है। उनके अनुसार, अगर कुछ राज्यों की जन्म दर को अलग कर दिया जाए, तो देश का औसत आंकड़ा 1.9 तक पहुंच जाता है, जो भविष्य के लिए चिंता का संकेत है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या संतुलन केवल आंकड़ों का विषय नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था, सामाजिक ढांचे और आने वाली पीढ़ियों पर पड़ता है। उनके इस बयान के बाद यह चर्चा शुरू हो गई है कि आधुनिक जीवनशैली, लिव-इन रिलेशनशिप और शादी में देरी जैसे चलन किस तरह समाज और जनसंख्या संरचना को प्रभावित कर रहे हैं। RSS प्रमुख की यह टिप्पणी केवल सामाजिक विचार नहीं, बल्कि भविष्य को लेकर एक चेतावनी के रूप में भी देखी जा रही है।







