दिल्ली में हुए धमाके ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। इस हमले के बाद जब जांच एजेंसियों ने जम्मू-कश्मीर कनेक्शन की बात कही, तो सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस मामले पर पहली बार प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “किसी एक घटना के आधार पर पूरे राज्य या समुदाय को बदनाम करना गलत है।”
उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियां अपना काम कर रही हैं और जल्द ही सच्चाई सामने आएगी। लेकिन इस बीच कश्मीरियों के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिशें खतरनाक हैं। उनका बयान सोशल मीडिया पर भी तेजी से वायरल हो रहा है।
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा, “दिल्ली ब्लास्ट एक जघन्य आतंकी हमला है, लेकिन यह कहना कि हर कश्मीरी इस साजिश का हिस्सा है, बेहद गैरजिम्मेदाराना है। जम्मू-कश्मीर के लोग आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीड़ित रहे हैं, न कि उसके समर्थक।”
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे वक्त में देश को एकजुटता और विवेक की जरूरत है, न कि शक और विभाजन की। उमर अब्दुल्ला ने जांच एजेंसियों से अपील की कि दोषियों को सजा जरूर मिले, लेकिन किसी बेगुनाह को न फंसाया जाए।
उनका यह बयान ऐसे समय में आया है जब जांच एजेंसियां दिल्ली ब्लास्ट के सिलसिले में कुछ संदिग्धों को जम्मू और श्रीनगर से पूछताछ के लिए दिल्ली ला रही हैं।
कश्मीर से दिल्ली तक बढ़ी राजनीतिक सरगर्मी
दिल्ली ब्लास्ट की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे कश्मीर कनेक्शन की चर्चा ने राजनीतिक माहौल गर्मा दिया है। कुछ विपक्षी नेताओं ने सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आतंकी घटनाओं को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
वहीं उमर अब्दुल्ला ने साफ कहा कि “हम आतंकवाद के खिलाफ हैं और रहेंगे। लेकिन कश्मीरियों को शक की नजर से देखना बंद कीजिए। यह देश का हिस्सा हैं, दुश्मन नहीं।” उन्होंने मीडिया से भी जिम्मेदारी निभाने की अपील की, ताकि गलत सूचनाओं से लोगों में डर या नफरत न फैले।
दिल्ली ब्लास्ट में इस्तेमाल की गई कार और विस्फोटक सामग्री को लेकर कई अहम सुराग मिले हैं। शुरुआती जांच में कुछ फोन कॉल्स और फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन जम्मू-कश्मीर से जुड़े बताए जा रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियां अब इन सुरागों के आधार पर आतंकी नेटवर्क की कड़ी जोड़ने में लगी हैं। NIA और दिल्ली पुलिस की संयुक्त टीम श्रीनगर, अनंतनाग और पुलवामा में लगातार छापेमारी कर रही है।
हालांकि अब तक किसी ठोस आतंकी संगठन की जिम्मेदारी की पुष्टि नहीं हुई है। एजेंसियां सोशल मीडिया अकाउंट्स और बैंक डिटेल्स की जांच कर रही हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि फंडिंग और प्लानिंग कहां से हुई थी।
जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला बोले — “दोषियों को सजा मिले, लेकिन निर्दोषों को न सताया जाए” उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार हर संभव तरीके से केंद्र और सुरक्षा एजेंसियों की मदद करेगी। उन्होंने स्पष्ट किया, “हम चाहते हैं कि दिल्ली ब्लास्ट के पीछे जो भी हैं, उन्हें सख्त से सख्त सजा मिले। लेकिन यह भी जरूरी है कि निर्दोषों को न सताया जाए। हर जांच सबूतों पर आधारित होनी चाहिए, अफवाहों पर नहीं।”
]उन्होंने कहा कि इस तरह की घटनाएं देश को तोड़ने के लिए की जाती हैं, और हमें मिलकर उन्हें नाकाम करना होगा। उमर अब्दुल्ला ने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि राजनीतिक मतभेदों को किनारे रखकर देश की सुरक्षा के लिए एक साथ खड़े हों।
सोशल मीडिया पर मिला समर्थन, कुछ ने उठाए सवाल
उमर अब्दुल्ला के बयान को सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं। कई लोगों ने उनकी बात का समर्थन करते हुए लिखा कि “हर कश्मीरी आतंकी नहीं होता, बल्कि आतंक का सबसे बड़ा शिकार वही हैं।”
वहीं कुछ यूजर्स ने सवाल उठाए कि जब भी कोई आतंकी घटना होती है, तब ऐसे बयान क्यों दिए जाते हैं जो जांच से पहले ही एक धारणा बना देते हैं।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि उमर अब्दुल्ला का यह बयान तनाव कम करने और कश्मीरियों के खिलाफ बढ़ते पूर्वाग्रह को रोकने की दिशा में जरूरी कदम है।
दिल्ली ब्लास्ट के बाद देशभर में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। रेलवे स्टेशन, मेट्रो, एयरपोर्ट और भीड़भाड़ वाले इलाकों में हाई अलर्ट जारी है। खुफिया एजेंसियों को इस बात की जानकारी मिली है कि आतंकी संगठन किसी बड़े हमले की साजिश रच सकते हैं।
कश्मीर में भी सुरक्षा बलों को सतर्क कर दिया गया है और सीमावर्ती इलाकों में गश्त बढ़ा दी गई है। अधिकारियों का कहना है कि जांच पूरी होने तक किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी।
फिलहाल पूरे देश की नजर अब NIA और दिल्ली पुलिस की संयुक्त जांच रिपोर्ट पर है, जो आने वाले कुछ दिनों में सामने आ सकती है। रिपोर्ट में यह खुलासा हो सकता है कि धमाके की साजिश कहां रची गई, कौन लोग इसमें शामिल थे और किन राज्यों से इसका नेटवर्क जुड़ा था।
वहीं उमर अब्दुल्ला का बयान अब इस मुद्दे को सिर्फ जांच नहीं बल्कि एक राष्ट्रीय विमर्श का हिस्सा बना चुका है—कि क्या हर बार कश्मीर को शक के घेरे में रखना वाजिब है?






