बांग्लादेश एक बार फिर गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट के दौर से गुजर रहा है। छात्र नेता और विद्रोह के प्रतीक माने जा रहे उस्मान हादी की मौत के बाद से देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क उठी है। राजधानी ढाका समेत कई बड़े शहरों में आगजनी, तोड़फोड़ और प्रदर्शन की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। यह उबाल ऐसे समय में देखने को मिल रहा है, जब देश में आम चुनाव होने में दो महीने से भी कम समय बचा है। चुनावी माहौल में बढ़ती हिंसा ने न केवल आम जनता की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है, बल्कि अंतरिम सरकार की स्थिरता पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। सड़कों पर उतरी भीड़, बंद होते बाजार और जले हुए सरकारी-निजी प्रतिष्ठान यह संकेत दे रहे हैं कि हालात तेजी से नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।
यूनुस सरकार को बड़ा झटका
हिंसा के बीच अंतरिम सरकार को उस वक्त बड़ा झटका लगा, जब गृह मंत्रालय के विशेष सहायक खुदाबख्श चौधरी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। खुदाबख्श चौधरी बांग्लादेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (IGP) रह चुके हैं और उन्हें 10 नवंबर 2024 को मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने विशेष सहायक नियुक्त किया था। सुरक्षा और आंतरिक व्यवस्था से जुड़े इतने वरिष्ठ अधिकारी का इस्तीफा ऐसे वक्त में आना, जब देश हिंसा की चपेट में है, सरकार की मुश्किलें और बढ़ा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह इस्तीफा केवल एक प्रशासनिक फैसला नहीं, बल्कि सरकार के भीतर गहराते मतभेदों और दबाव का संकेत भी हो सकता है। विपक्ष इसे यूनुस सरकार की विफलता के तौर पर पेश कर रहा है, जबकि आम लोगों में असुरक्षा की भावना और गहरी हो गई है।
तारिक रहमान की वापसी और ढाका में बम धमाका, बढ़ी सुरक्षा चिंता
इसी उथल-पुथल के बीच बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री के बेटे और एक प्रभावशाली राजनीतिक चेहरे तारिक रहमान की देश में वापसी ने माहौल को और गर्म कर दिया है। उनकी वापसी से ठीक एक दिन पहले, बुधवार 24 दिसंबर को राजधानी ढाका में एक चर्च के पास बम धमाके की घटना सामने आई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। इस धमाके ने राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। माना जा रहा है कि तारिक रहमान की वापसी से राजनीतिक ध्रुवीकरण और तेज हो सकता है, जिसका असर सड़कों पर पहले से चल रहे आंदोलनों पर भी पड़ेगा। सुरक्षा एजेंसियां हाई अलर्ट पर हैं, लेकिन लगातार हो रही घटनाओं ने यह साफ कर दिया है कि हालात बेहद संवेदनशील बने हुए हैं। आम नागरिकों के बीच डर का माहौल है और लोग आने वाले दिनों को लेकर आशंकित नजर आ रहे हैं।
अखबारों पर हमला, लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सवाल
उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की हिंसा ने मीडिया को भी अपनी चपेट में ले लिया है। गुस्साई भीड़ ने देश के दो प्रमुख अखबारों—डेली स्टार और प्रथम आलो—के दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया। इन घटनाओं ने बांग्लादेश में प्रेस की आज़ादी और लोकतांत्रिक मूल्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। पत्रकार संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने इन हमलों की कड़ी निंदा की है और सरकार से मीडिया कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। चुनाव से पहले इस तरह के हमले यह संकेत देते हैं कि राजनीतिक तनाव अब केवल सत्ता की लड़ाई नहीं रहा, बल्कि समाज के हर हिस्से को प्रभावित कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर हालात पर जल्द काबू नहीं पाया गया, तो इसका सीधा असर चुनाव प्रक्रिया, अंतरराष्ट्रीय छवि और क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है। बांग्लादेश इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है, जहां लिया गया हर फैसला देश के भविष्य की दिशा तय करेगा।
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