झीलों की नगरी उदयपुर में इन दिनों एक अलग ही हलचल है। यह हलचल पर्यटकों की नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ रहे आम नागरिकों, युवाओं और पर्यावरण प्रेमियों की है। हाल ही में उदयपुर कलेक्ट्रेट के बाहर सैकड़ों लोगों ने इकट्ठा होकर अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि अरावली केवल पत्थरों का ढेर नहीं, बल्कि राजस्थान की ‘जीवनरेखा’ है। हाथों में पोस्टर और बैनर थामे युवाओं ने सरकार और सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर सवाल उठाए हैं, जिससे अरावली की परिभाषा बदलने की कोशिश की जा रही है। लोगों में इस बात को लेकर गहरा आक्रोश है कि अगर पहाड़ ही नहीं रहेंगे, तो मेवाड़ की संस्कृति, पर्यटन और यहां का वैभव भी इतिहास के पन्नों में दबकर रह जाएगा।
100 मीटर का ‘डेथ वारंट’: क्यों खतरे में हैं 90% पहाड़ियां?
इस पूरे विवाद और विरोध प्रदर्शन की जड़ में केंद्र सरकार द्वारा सुझाई गई अरावली की नई परिभाषा है। नए नियमों के अनुसार, अब केवल उन्हीं भू-आकृतियों को ‘अरावली’ माना जाएगा जिनकी ऊंचाई स्थानीय धरातल से 100 मीटर या उससे अधिक है। पर्यावरणविदों का दावा है कि इस एक तकनीकी बदलाव से राजस्थान की लगभग 90% अरावली पहाड़ियां ‘पहाड़’ के दायरे से बाहर हो जाएंगी। उदयपुर और आसपास के क्षेत्रों में स्थित हज़ारों छोटे टीले और कम ऊंचाई वाली पहाड़ियां अब कानूनी सुरक्षा के दायरे से बाहर हो सकती हैं, जिससे वहां धड़ल्ले से खनन और निर्माण कार्य शुरू होने का रास्ता साफ हो जाएगा। प्रदर्शनकारियों ने इसे अरावली के लिए ‘मृत्यु प्रमाण पत्र’ करार दिया है, क्योंकि इससे भू-माफियाओं और खनन माफियाओं को खुली छूट मिलने का डर है।
सूख जाएंगी झीलें और बढ़ेगा रेगिस्तान
उदयपुर के स्थानीय विशेषज्ञों और जल प्रेमियों ने आगाह किया है कि अरावली के विनाश का सीधा असर यहाँ की झीलों पर पड़ेगा। अरावली की ये छोटी-छोटी पहाड़ियां प्राकृतिक ‘कैचमेंट एरिया’ का काम करती हैं, जिनसे बहकर आने वाला पानी फतहसागर और पिछोला जैसी विश्व प्रसिद्ध झीलों को भरता है। यदि इन पहाड़ियों को खनन के नाम पर काट दिया गया, तो उदयपुर की झीलें अगले कुछ दशकों में रेगिस्तान में बदल सकती हैं। इसके अलावा, अरावली की पर्वत श्रृंखला थार के रेगिस्तान को आगे बढ़ने से रोकने वाली एकमात्र दीवार है। विशेषज्ञों का कहना है कि 10 मीटर से 30 मीटर तक के छोटे टीले भी धूल भरी आंधियों को रोकने और भूजल को रिचार्ज करने में सक्षम हैं। अगर इन्हें नष्ट किया गया, तो उत्तर भारत में जल संकट और प्रदूषण की स्थिति भयावह हो जाएगी।
सियासी उबाल और जन आंदोलन: अब आर-पार की लड़ाई की तैयारी
अरावली को बचाने की यह गूंज अब केवल उदयपुर तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने पूरे राजस्थान में राजनीतिक गर्माहट पैदा कर दी है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित कई बड़े नेताओं ने इस फैसले पर चिंता जताई है और इसे पारिस्थितिक विनाश का निमंत्रण बताया है। उदयपुर में हुए प्रदर्शन में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही विचारधाराओं से जुड़े पर्यावरण प्रेमी राजनीति से ऊपर उठकर एक साथ नज़र आए। प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि अरावली की सुरक्षा के लिए इस नए नियम को वापस नहीं लिया गया या इसमें सुधार नहीं हुआ, तो यह विरोध प्रदर्शन एक बड़े जन आंदोलन का रूप ले लेगा। स्थानीय लोगों का संकल्प है कि वे अपने पुरखों की इस विरासत को बचाने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे, क्योंकि अरावली बचेगी तभी राजस्थान का भविष्य सुरक्षित रहेगा।







