बांग्लादेश की सियासत में जिस पल का अंदेशा कई महीनों से लगाया जा रहा था, वह आखिरकार सच साबित हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को बांग्लादेश की विशेष अदालत ने निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाने और मानवता के खिलाफ अपराध के मामले में फांसी की सजा सुनाई है। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि सरकारी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए निर्दोष लोगों की हत्या कराना किसी भी लोकतांत्रिक ढांचे के खिलाफ है और इसके लिए अधिकतम दंड ही न्याय सुनिश्चित कर सकता है। फैसले के बाद बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल आ गया, विपक्ष की ओर से फैसले का स्वागत किया जा रहा है, जबकि हसीना समर्थक इसे बदले की कार्रवाई बता रहे हैं।
2018 गोलीकांड – जब सड़कों पर बहा था खून
इस पूरे विवाद की जड़ें वर्ष 2018 के उस गोलीकांड से जुड़ी हैं, जिसे बांग्लादेश के इतिहास की सबसे काली घटनाओं में से एक माना जाता है। आरोपों के अनुसार, छात्र संगठनों और आम लोगों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए पुलिस को कथित रूप से कठोर कार्रवाई के आदेश दिए गए थे। इस कार्रवाई में कई निर्दोष नागरिकों ने अपनी जान गंवाई थी। आरोप यह भी है कि उस समय सरकारी तंत्र को दबाव में लाकर इस पूरी घटना को छुपाने की कोशिश की गई थी। लेकिन वर्षों बाद सामने आए सबूतों, गवाहों की गवाही और घटनास्थल के वीडियो ने केस की दिशा पूरी तरह बदल दी। अदालत ने जांच एजेंसियों द्वारा पेश किए गए दस्तावेजों को विश्वसनीय मानते हुए शेख हसीना को इस घटना का मुख्य रूप से उत्तरदायी माना।
क्यों दी गई फांसी की सजा?
अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा कि यह मामला केवल किसी एक घटना का नहीं, बल्कि लगातार बढ़ते सरकारी दमन और शक्ति के दुरुपयोग का प्रतीक है। जज ने टिप्पणी की कि प्रधानमंत्री रहते हुए शेख हसीना को अपने पद और शक्तियों का संवैधानिक दायरे में उपयोग करना चाहिए था, लेकिन इसके विपरीत उन्होंने ऐसे कदम उठाए जो लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर करते हैं। फैसले में कहा गया कि निहत्थे लोगों पर गोली चलाने जैसे फैसले किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नहीं किए जा सकते। इसी आधार पर अदालत ने सबसे कठोर सजा का आदेश जारी किया, ताकि देश में कानून और न्याय की सर्वोच्चता स्थापित की जा सके।
फैसले के बाद बांग्लादेश में तनाव
शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद बांग्लादेश में तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। ढाका से लेकर छोटे कस्बों तक सुरक्षा बढ़ा दी गई है, इंटरनेट सेवाओं पर निगरानी बढ़ाई गई है और प्रदर्शन रोकने के लिए सेना भी तैनात की गई है। हसीना की पार्टी अवामी लीग का कहना है कि यह फैसला राजनीतिक बदले की भावना का नतीजा है और वह उच्च अदालत में अपील करेंगी। वहीं विपक्ष का दावा है कि यह न्याय का वह पल है जिसका इंतजार वर्षों से किया जा रहा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस फैसले की गूंज सुनाई दी है, कई देशों ने सभी पक्षों से शांति बनाए रखने और न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करने की अपील की है। अब देखने वाली बात यह है कि आने वाले दिनों में बांग्लादेश की राजनीति किस दिशा में मुड़ती है और क्या यह फैसला देश में स्थिरता ला पाएगा या राजनीतिक संघर्ष और तेज होगा।
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