Wednesday, December 3, 2025

संघ प्रमुख के ‘तीन बच्चे’ बयान पर सियासी संग्राम, ओपी राजभर बोले – औलाद नीति से नहीं, ऊपर वाले की मर्जी से मिलती हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने “कम से कम तीन बच्चे” पैदा करने की बात कही थी, को लेकर सियासी हलकों में हंगामा मच गया है। इस पर उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। मीडिया से बातचीत करते हुए राजभर ने कहा कि भागवत जी ने जो कहा, वो उनका व्यक्तिगत विचार हो सकता है, लेकिन समाज में हर किसी को अपनी मर्जी से जीने का हक है। उन्होंने कहा, “जबान में ताकत है, जो मन में आए बोलिए, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि पूरा देश उसे माने। हम उनके इस बयान को नहीं मानते।” राजभर ने इशारों में यह भी कहा कि ये बयान सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने का काम कर सकता है।

लालू यादव का दिया उदाहरण

राजभर ने आरएसएस प्रमुख के बयान की तुलना देश के चर्चित नेताओं से करते हुए कहा कि राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां बड़े नेताओं के कई संतानें हैं। उन्होंने खासतौर पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) प्रमुख और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम लिया, जिनके नौ बच्चे हैं। राजभर बोले, “क्या अब हम उन्हें गलत ठहराएंगे? उन्होंने तो संविधान के दायरे में रहते हुए ही परिवार बढ़ाया।” मंत्री ने यह भी कहा कि जनसंख्या नियंत्रण एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे धार्मिक या वैचारिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने साफ कहा कि अगर समाज को दिशा देनी है तो शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए, न कि लोगों के परिवारों की संख्या गिनने पर।

‘बच्चों की संख्या भगवान तय करता है’

ओपी राजभर ने कहा कि संतान होना या न होना किसी इंसान के हाथ में नहीं होता। यह एक सामाजिक और प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिस पर किसी नीति या बयान से नियंत्रण नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, “ऊपर वाला तय करता है कि किसके कितने बच्चे होंगे। कुछ लोग कोशिश के बाद भी संतान नहीं पा पाते, तो क्या उन्हें दोषी ठहराया जाएगा?” राजभर ने सवाल उठाया कि जब देश में गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई जैसे गंभीर मुद्दे हैं, तब इस तरह के बयानों का मकसद क्या है? उन्होंने कहा कि समाज को जोड़ने की जिम्मेदारी जिनकी है, अगर वही इसे बांटने का काम करेंगे, तो देश कैसे आगे बढ़ेगा। उनके मुताबिक, ऐसे बयान केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण का साधन हैं और इनसे आम आदमी की जिंदगी पर कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ता।

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