Wednesday, December 31, 2025

इस्लाम में ब्याज हराम है… तो पाकिस्तान में लोन कैसे चलता है? बिना इंटरेस्ट बैंकिंग की पूरी सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे

इस्लाम में ब्याज यानी ‘रिबा’ को सख्ती से हराम माना गया है। कुरान और इस्लामिक शरीयत के अनुसार ब्याज से कमाई को नाजायज बताया गया है। यही वजह है कि जब बात पाकिस्तान की आती है, जो खुद को एक इस्लामिक रिपब्लिक घोषित करता है, तो लोगों के मन में स्वाभाविक सवाल उठता है कि क्या वहां आम नागरिकों को बिना ब्याज के लोन मिलते हैं। बाहर से देखने पर यह सवाल सीधा लगता है, लेकिन इसकी सच्चाई उतनी सरल नहीं है। पाकिस्तान का बैंकिंग सिस्टम पूरी तरह से ब्याज-मुक्त नहीं है, बल्कि वहां दो अलग-अलग तरह की बैंकिंग व्यवस्थाएं एक साथ चल रही हैं। एक तरफ पारंपरिक बैंक हैं, जो ब्याज के आधार पर लोन और सेविंग्स चलाते हैं, वहीं दूसरी तरफ इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम भी मौजूद है, जो शरीयत के सिद्धांतों पर काम करता है।

दो सिस्टम, एक देश: पारंपरिक और इस्लामिक बैंकिंग साथ-साथ

पाकिस्तान में फिलहाल “ड्यूल बैंकिंग सिस्टम” लागू है। इसका मतलब यह है कि देश में पारंपरिक ब्याज आधारित बैंक भी काम कर रहे हैं और इस्लामिक बैंक भी। पारंपरिक बैंकों में वही सिस्टम चलता है जो दुनिया के अधिकतर देशों में देखने को मिलता है, जहां लोन पर तय ब्याज लिया जाता है और जमा राशि पर ब्याज दिया जाता है। इसके उलट इस्लामिक बैंकिंग में ब्याज की जगह मुनाफा और साझेदारी का मॉडल अपनाया जाता है। यहां लोन शब्द की बजाय “फाइनेंसिंग” का इस्तेमाल होता है। उदाहरण के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति घर खरीदना चाहता है, तो इस्लामिक बैंक पहले उस घर को खुद खरीदता है और फिर ग्राहक को तय मुनाफे के साथ किश्तों में बेच देता है। इसी तरह बिजनेस फाइनेंसिंग में बैंक और ग्राहक मुनाफे और नुकसान दोनों में साझेदार बनते हैं। तकनीकी रूप से इसमें ब्याज नहीं होता, लेकिन व्यावहारिक रूप से ग्राहक को अतिरिक्त रकम चुकानी ही पड़ती है।

बिना ब्याज लोन मिलता है या नहीं? जवाब हां भी और नहीं भी

अगर सवाल सीधे-सीधे पूछा जाए कि क्या पाकिस्तान में बिना ब्याज लोन मिलता है, तो जवाब थोड़ा घुमावदार है। हां, अगर आप इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम के तहत फाइनेंस लेते हैं, तो वहां ब्याज नहीं लिया जाता, बल्कि शरीयत के अनुसार मुनाफे का मॉडल लागू होता है। लेकिन अगर आप पारंपरिक बैंक से लोन लेते हैं, तो वहां ब्याज पूरी तरह लागू होता है। यही वजह है कि पाकिस्तान के आम नागरिकों के पास दोनों विकल्प मौजूद हैं। हालांकि, यह भी सच है कि हर व्यक्ति के लिए इस्लामिक बैंकिंग तक पहुंच आसान नहीं होती। कई इलाकों में इस्लामिक बैंक या उनकी शाखाएं सीमित हैं। इसके अलावा, इस्लामिक फाइनेंसिंग की शर्तें भी कई बार पारंपरिक लोन से ज्यादा सख्त या जटिल हो सकती हैं। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान में बिना ब्याज लोन की व्यवस्था मौजूद तो है, लेकिन वह हर नागरिक के लिए सरल और सर्वसुलभ नहीं है।

तेजी से बढ़ती इस्लामिक बैंकिंग

स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के आंकड़े बताते हैं कि इस्लामिक बैंकिंग वहां तेजी से बढ़ रही है। सितंबर 2025 तक इस्लामिक बैंकिंग के कुल एसेट्स 12.7 ट्रिलियन पाकिस्तानी रुपये तक पहुंच चुके हैं, जो पूरे बैंकिंग सेक्टर का करीब 21.6 प्रतिशत हिस्सा है। डिपॉजिट्स के मामले में यह हिस्सेदारी 26.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है। सालाना आधार पर इस्लामिक बैंकिंग के एसेट्स और डिपॉजिट्स में लगभग 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। ये आंकड़े दिखाते हैं कि पाकिस्तान धीरे-धीरे शरीयत आधारित बैंकिंग की ओर बढ़ रहा है। इसके बावजूद, देश की पूरी अर्थव्यवस्था अब भी पारंपरिक ब्याज आधारित सिस्टम पर काफी हद तक निर्भर है। सरकारी कर्ज, अंतरराष्ट्रीय ऋण और आईएमएफ जैसे संस्थानों से लिया गया फंड पूरी तरह ब्याज पर आधारित होता है। ऐसे में पाकिस्तान का दावा कि वह पूरी तरह ब्याज-मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है, फिलहाल एक लंबी और जटिल प्रक्रिया का हिस्सा ही नजर आता है।

Read more-‘मेरे बच्चे बिना पिता के हो गए…’ पाकिस्तानी क्रिकेटर की एक्स-वाइफ का दर्दनाक खुलासा, तलाक के पीछे का राज जानकर चौंक जाएंगे

Hot this week

दिल्ली-नैनीताल हाईवे पर बोलेरो पर पलटा ट्रक, चालक की कुचलकर मौत

रामपुर जिले के थाना गंज क्षेत्र में रविवार शाम...
spot_img

Related Articles

Popular Categories

spot_imgspot_img