बांग्लादेश की राजनीति एक बार फिर उथल-पुथल के दौर में पहुंच गई है। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे साजिब वाजेद ने साफ शब्दों में कहा है कि अगर अवामी लीग पर लगा प्रतिबंध नहीं हटाया गया, तो उनके समर्थक आगामी चुनाव को किसी भी कीमत पर होने नहीं देंगे। यह बयान ऐसी स्थिति में आया है, जब देश पहले ही राजनीतिक तनाव, गिरफ्तारियों और सत्ता परिवर्तन के झटकों से गुजर रहा है।
अवामी लीग के प्रतिबंधित होने के बाद चुनाव आयोग ने साफ कर दिया था कि फरवरी में चुनाव तय समय पर होंगे। लेकिन वाजेद की नई चेतावनी ने पूरे माहौल को बदल दिया है। राजनीतिक विश्लेषक इसे “शक्ति प्रदर्शन” की तरह देख रहे हैं, जिसका मकसद सरकार पर दबाव बढ़ाना है। वाजेद ने यह भी कहा कि चुनाव तभी सार्थक होंगे जब सभी बड़े राजनीतिक दलों को बराबर का अवसर मिले। उनका बयान अब देश-विदेश में बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा को लेकर चिंता पैदा कर रहा है।
वाजेद का तर्क और अवामी लीग की नाराज़गी
वाजेद का कहना है कि बिना अवामी लीग के कोई भी चुनाव अधूरा और लोकतांत्रिक मूल्य प्रणाली के विपरीत होगा। उन्होंने दावा किया कि वर्तमान अंतरिम सरकार विपक्षी ताकतों को चुनाव प्रक्रिया से हटाकर “एकपक्षीय चुनाव” कराने की तैयारी में है। उनका कहना है कि अगर बड़े दल को मैदान से बाहर कर दिया जाए, तो चुनाव सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगा, जिसे न जनता स्वीकार करेगी और न अंतरराष्ट्रीय समुदाय।
अवामी लीग के समर्थकों का मानना है कि प्रतिबंध “राजनीतिक बदले की कार्रवाई” है, जबकि आलोचकों का कहना है कि पार्टी पर लगे कई आरोपों की जांच जरूरी है। दोनों पक्षों के बयानों के बीच आम जनता असमंजस में है कि बांग्लादेश में आखिर अगले कुछ महीनों में होने क्या वाला है। राजनीतिक वातावरण ऐसा हो गया है कि थोड़ी सी चिंगारी भी बड़े टकराव को जन्म दे सकती है।
सरकार पर दबाव बढ़ा
साजिब वाजेद की चेतावनी के बाद अब नजरें यूनुस सरकार पर टिक गई हैं। सरकार चुनाव प्रक्रिया की तैयारी में जुटी है, लेकिन अवामी लीग के प्रतिबंध ने चुनाव को विवादित बना दिया है। राजनीतिक विशेषज्ञ कह रहे हैं कि सरकार चुनाव से पहले किसी बड़े विरोध से बचना चाहेगी। ऐसे में बातचीत, मध्यस्थता या प्रतिबंध में ढील जैसे विकल्प सामने आ सकते हैं।
हालांकि, सरकार के भीतर के सूत्र बताते हैं कि फिलहाल प्रतिबंध हटाने पर कोई ठोस चर्चा नहीं हुई है। दूसरी ओर, विपक्ष की तरफ से चेतावनी दी जा रही है कि चुनाव को “जबरन” कराने की कोशिश देश को गंभीर अस्थिरता में धकेल सकती है। चुनावी प्रक्रिया का बहिष्कार, प्रदर्शन और हिंसा जैसी स्थितियां पैदा होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर राजनीतिक टकराव बढ़ा, तो चुनाव टलना भी संभव है।
जनता में बेचैनी
बांग्लादेश की जनता पहले ही आर्थिक दबाव, महंगाई और बेरोजगारी की चुनौतियों से जूझ रही है। अब इस राजनीतिक विवाद ने लोगों की चिंता और बढ़ा दी है। सड़क से सोशल मीडिया तक सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है—क्या फरवरी में चुनाव होंगे या नहीं? लोगों का कहना है कि राजनीतिक दलों का टकराव हमेशा आम नागरिकों की मुश्किलें बढ़ाता है।
देश में कई संगठनों और बुद्धिजीवियों ने भी चिंता जताई है कि अगर अवामी लीग और सरकार के बीच टकराव बढ़ता है, तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को भारी नुकसान होगा। वे सरकार से अपील कर रहे हैं कि राजनीतिक संवाद को प्राथमिकता दे, ताकि चुनाव शांतिपूर्ण और निष्पक्ष हो सकें। वहीं, अवामी लीग समर्थक यह कहते हुए मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं कि “लोकतंत्र की लड़ाई सड़कों से भी लड़ी जाएगी।”
कुल मिलाकर, साजिब वाजेद की चेतावनी ने बांग्लादेश की राजनीति में हलचल बढ़ा दी है। आने वाले सप्ताह तय करेंगे कि सरकार और अवामी लीग के बीच बातचीत होती है या देश एक और बड़े राजनीतिक संकट की ओर बढ़ता है—जहां चुनाव सिर्फ तारीखों में लिखे रह जाएंगे, लेकिन देश की लोकतांत्रिक आत्मा सवालों के घेरे में आ जाएगी।
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