Friday, December 12, 2025

‘मंदिर का धन भगवान का है, बैंक का नहीं’, CJI सूर्यकांत की कड़ी टिप्पणी से उठा बड़ा मुद्दा

सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण सुनवाई के दौरान मंदिर निधियों को लेकर बड़ा बयान सामने आया। चीफ जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि मंदिर में चढ़ाया गया हर पैसा भगवान का होता है और उसका उपयोग केवल मंदिर तथा उससे जुड़े धार्मिक कार्यों के लिए ही किया जाना चाहिए। सीजेआई ने कहा कि कुछ कोऑपरेटिव बैंक आर्थिक संकट में फंसकर मंदिरों की जमा पूंजी को अपनी “बचत” या “आय” का स्रोत समझने लगे थे, जबकि यह न तो कानूनी रूप से सही है और न ही नैतिक रूप से स्वीकार्य। उन्होंने यह भी कहा कि भक्तों की आस्था और दान की राशि का उचित सम्मान होना चाहिए और इसे किसी भी कीमत पर बैंकिंग प्रणाली के घाटे को ढकने के साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए।

यह टिप्पणी इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में देश के कई राज्यों में मंदिर निधियों को लेकर विवाद और अनियमितताएँ सामने आई हैं।

कोऑपरेटिव बैंकों की अपील

सुनवाई उस समय हुई जब कुछ कोऑपरेटिव बैंकों ने केरल हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की। केरल हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि इन बैंकों को थिरुनेली मंदिर देवस्वोम की जमा रकम वापस करनी होगी। बैंक इस आदेश से असहमत थे और उन्होंने कहा कि वे फिलहाल वित्तीय कठिनाई में हैं, इसलिए एकमुश्त राशि लौटाना संभव नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बैंकों की दलीलें सुनते हुए साफ किया कि मंदिर का पैसा किसी भी प्रकार की “वित्तीय अस्थिरता” का बोझ उठाने के लिए नहीं है। मंदिर प्रशासन और श्रद्धालुओं का अधिकार है कि उनका धन सुरक्षित रहे और आवश्यकता पड़ने पर धार्मिक गतिविधियों, रखरखाव, सेवा-पूजा और जनकल्याण कार्यों में इस्तेमाल किया जाए। पीठ ने कहा कि मंदिरों की संपत्ति को लेकर नियम पहले से ही स्पष्ट हैं और किसी भी बैंक या संस्था को इसे अपनी आर्थिक मजबूरी का हथियार नहीं बनाना चाहिए। कोर्ट ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे जमा धन लौटाने की प्रक्रिया में देरी न करें।

अदालत की चिंता—मंदिर निधियों की सुरक्षा और प्रशासनिक जवाबदेही

CJI सूर्यकांत ने कहा कि देशभर के कई मंदिरों में प्रतिदिन बड़ी मात्रा में दान जमा होता है। यह धन भक्तों की आस्था का प्रतीक है और धार्मिक संस्थाओं की जिम्मेदारी है कि इसे अत्यंत पारदर्शिता, सुरक्षा और सही उपयोग के साथ संभाला जाए।

उन्होंने कहा कि जब मंदिरों की निधि असुरक्षित बैंकों में जमा कर दी जाती है, तो सबसे बड़ा जोखिम मंदिर प्रशासन और श्रद्धालुओं पर आ जाता है। कोर्ट का मानना है कि धार्मिक संस्थाओं को वित्तीय निर्णय बेहद सतर्कता के साथ लेने चाहिए और यदि किसी बैंक में अनियमितता या वित्तीय जोखिम की संभावना हो, तो मंदिरों की पूंजी वहाँ नहीं रखी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिरों से जुड़े ट्रस्ट और प्रबंधन समितियों को यह समझना होगा कि वे केवल “धन के रखवाले” हैं, मालिक नहीं। इसके कारण मंदिर का पैसा किसी भी तरह के निजी लाभ, राजनीतिक प्रभाव या आर्थिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी को कई विशेषज्ञ मंदिर प्रशासन की जवाबदेही और पारदर्शिता को मजबूती देने की दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं।

फैसले का व्यापक प्रभाव—धार्मिक संस्थानों और बैंकों के लिए बड़ा संदेश

सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी का असर सिर्फ केरल तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका संदेश देशभर के मंदिरों, ट्रस्टों और बैंकिंग संस्थानों को प्रभावित करेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह फैसला मंदिर निधि के संचालन के लिए नई दिशाओं को जन्म दे सकता है। ऐसे मामलों में अदालत का रुख पहले भी यह रहा है कि धार्मिक संस्थाओं का पैसा अत्यंत संवेदनशील होता है, क्योंकि यह भक्तों की भावनाओं से सीधे जुड़ा होता है।

इसलिए किसी भी प्रकार की गलत प्रथा, निवेश में जोखिम या धन के दुरुपयोग को न्यायपालिका गंभीरता से देखती रही है। इस टिप्पणी के बाद कई राज्यों में मंदिर निधि प्रबंधन की नीतियों की समीक्षा होने की संभावना है। कोऑपरेटिव बैंकों की भूमिका पर भी सवाल उठ सकते हैं, विशेष तौर पर उन बैंकों पर जो लंबे समय से वित्तीय अनिश्चितताओं से जूझ रहे हैं।

मंदिरों की ओर से भी पारदर्शिता बढ़ाने और सुरक्षित बैंकिंग विकल्प चुनने को लेकर नई पहलें संभव हैं। पूरी घटना ने एक बार फिर यह संदेश दिया है कि धार्मिक स्थानों का धन जनता का भरोसा है और इसे किसी भी तरह की आर्थिक अस्थिरता में नहीं घसीटा जा सकता।

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