Wednesday, November 26, 2025

महाभारत के ‘चीरहरण’ सीन ने क्यों तोड़ दिया था रूपा गांगुली को? एक टेक की शूटिंग के बाद फूट-फूट कर रोई थीं एक्ट्रेस

दूरदर्शन के ऐतिहासिक धारावाहिक महाभारत में द्रौपदी की भूमिका निभाने वाली रूपा गांगुली को इस किरदार ने अमर बना दिया। उनके भाव, उनकी आवाज़ और उनकी पीड़ा ने दर्शकों को वर्षों बाद भी उसी तरह झकझोर कर रखा है। सेट पर एक वक्त ऐसा भी आया जब स्क्रीन पर दिखाई देने वाला दर्द असल में उनका खुद का दर्द बन गया। चीरहरण का प्रतिष्ठित सीन, जिसे पूरी कास्ट और टीम बेहद चुनौतीपूर्ण मानती थी, उन्होंने सिर्फ एक टेक में पूरा कर दिया। लेकिन कैमरा बंद होते ही वह इतनी गहराई तक अपने किरदार में डूब गईं कि अपने आप को संभाल नहीं पाईं और जोर-जोर से रोने लगीं। यह घटना उनके अभिनय की संवेदनशीलता और समर्पण को दर्शाती है।

एक संयोग से शुरू हुई एक्टिंग और द्रौपदी तक पहुंची लंबी यात्रा

रूपा गांगुली का जन्म 25 नवंबर 1966 को कोलकाता के कल्याणी में हुआ था। बचपन से उनकी रुचि कला और संगीत में थी, लेकिन अभिनय की दुनिया में आने की योजना कभी नहीं थी। एक पारिवारिक शादी समारोह के दौरान उनकी मुलाकात एक फिल्म निर्माता से हुई, जो अपनी नई परियोजना के लिए ताज़े चेहरे तलाश रहे थे। संकोच के बाद उन्होंने परिवार के कहने पर प्रस्ताव स्वीकार किया और यहीं से उनके करियर की शुरुआत हुई। शुरुआती प्रोजेक्ट्स में उनकी स्वाभाविक अदाकारी ने वरिष्ठ कलाकारों को भी प्रभावित किया और उन्हें फिल्मों, सीरियल्स और थिएटर में काम मिलने लगा।

हालांकि उन्होंने हिंदी और बंगाली फिल्मों में कई भूमिकाएँ निभाईं, लेकिन असली पहचान उन्हें तब मिली जब उन्हें महाभारत में द्रौपदी का रोल मिला। यह किरदार उनके लिए सिर्फ एक अभिनय नहीं, बल्कि जीवन का ऐसा पड़ाव बन गया जिसने उनकी प्रतिभा, भावनाओं और आत्मविश्वास को नई दिशा दी।

निजी जीवन के संघर्ष, संगीत से लगाव और राजनीति तक का सफर

रूपा गांगुली की निजी जिंदगी भी कई मुश्किलों से होकर गुजरी। शादी के बाद कुछ वर्षों तक रिश्तों में तनाव रहा, जिसने उनकी मानसिक स्थिति को गहराई से प्रभावित किया। मुश्किल दौर में उन्होंने खुद को टूटने से बचाए रखा और बेटे के जन्म के बाद जीवन में फिर से संतुलन पाया। बाद में तलाक के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान काम और खुद को मजबूत बनाने पर लगाया।

अभिनय के साथ-साथ वह रवींद्र संगीत की प्रशिक्षित गायिका और क्लासिकल डांसर भी हैं। कई बंगाली फिल्मों में उनके गाए गीतों ने उन्हें सम्मान दिलाया। अपने कला-जीवन के बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और सामाजिक मुद्दों, खासकर महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों पर मुखर आवाज बनीं।

दर्शकों के लिए वह आज भी द्रौपदी की उसी मजबूत, भावनात्मक और सच्ची छवि के रूप में याद की जाती हैं—एक ऐसी अभिनेत्री जिसने किरदार को निभाया नहीं, बल्कि उसे जिया।

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