Wednesday, November 19, 2025

RJD को आखिर कौन-सी चाल पड़ गई भारी? यादव-मुस्लिम वोटरों ने क्यों बदल दी पूरी दिशा!

Bihar Results 2025 में जो तस्वीर सामने आई, उसने आरजेडी के लंबे समय से चले आ रहे सामाजिक समीकरण की जड़ें हिला दीं। यादव-मुस्लिम का मजबूत वोट बैंक पार्टी की पहचान रहा है, लेकिन इस बार परंपरागत वोटरों ने साथ नहीं दिया। आरजेडी ने 50 यादव और 18 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देकर अपनी पुरानी रणनीति ही अपनाई, लेकिन चुनाव परिणामों ने पूरी धारणा बदलकर रख दी। जिन सीटों पर RJD को एकतरफा बढ़त मिलनी चाहिए थी, वहां बड़े पैमाने पर वोट ट्रांसफर नहीं हुआ। इन समुदायों के भीतर उपजे असंतोष, स्थानीय समीकरणों और नेतृत्व पर विश्वास में कमी ने परिणामों को पूरी तरह प्रभावित किया।

यादव समाज क्यों हुआ दूर? नेतृत्व पर उठे सवाल

इस चुनाव में यादव समाज की नाराजगी सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी। पिछली सरकार के दौरान बेरोजगारी, स्थानीय मुद्दों और नेतृत्व की कार्यशैली को लेकर असंतोष धीरे-धीरे बढ़ रहा था। कई यादव बहुल सीटों पर RJD को उम्मीद थी कि परंपरागत वोट सीधा उनके खेमे में आएगा, लेकिन ग्राउंड रिपोर्ट्स में पाया गया कि युवाओं का एक बड़ा हिस्सा विकास और स्थिरता के नाम पर NDA की ओर झुक गया।

आरजेडी के कई पुराने यादव नेताओं को टिकट नहीं देना, नए चेहरों को ज्यादा अहमियत देना और स्थानीय जातीय समीकरणों को नज़रअंदाज़ करना भी बड़ी वजह रही। खासकर, उम्मीदवार चयन में किए गए बदलावों ने सामाजिक आधार को खंडित किया। जिन सीटों पर पखवाड़े भर पहले तक RJD मजबूत बताई जा रही थी, वहां आखिरी समय में हुए बिखराव ने परिणाम को पलट दिया।

इसके अलावा, कई जगहों पर यादव और गैर-यादव पिछड़ी जातियों के बीच खींचतान ने RJD को सीधा नुकसान पहुंचाया। NDA ने इस नाराजगी को भांपते हुए ओबीसी और इबीसी वर्गों को मजबूती से साधा, जिसका सीधा असर यादव बहुल इलाकों में भी दिखा।

स्लिम वोट बैंक में सेंध? RJD के लिए बड़ा झटका

Bihar Results 2025 में मुस्लिम वोट बैंक का RJD से दूर जाना सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश माना जा रहा है। पार्टी ने 18 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे, लेकिन कई जगहों पर मुस्लिम मतदाताओं ने रणनीतिक वोटिंग करते हुए वोटों को अलग-अलग दिशा में बांट दिया। आरोप है कि RJD मुस्लिम समुदाय की सुरक्षा, रोज़गार और प्रतिनिधित्व से जुड़े मुद्दों को जमीन पर मजबूत तरीके से नहीं उठा सकी।

पिछले कुछ वर्षों में कई स्थानीय मुस्लिम नेताओं का RJD से मोहभंग हो चुका था, जिसकी भरपाई पार्टी चुनावी माहौल में नहीं कर पाई। कई सीटों पर मुस्लिम मतदाता ऐसे उम्मीदवारों की ओर झुक गए जो उन्हें तात्कालिक रूप से मजबूत प्रतिनिधित्व देने का भरोसा दे रहे थे। इसी का परिणाम हुआ कि त्रिकोणीय मुकाबलों में RJD पिछड़ती चली गई।

इसके साथ ही, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि मुस्लिम समुदाय ने इस चुनाव में “हारने वाले उम्मीदवार” की छवि से बचते हुए वोट ट्रांसफर किया, जो सीधा नुकसान RJD को हुआ। सामाजिक समीकरणों में इस बदलाव ने साबित कर दिया कि सिर्फ टिकट देना पर्याप्त नहीं होता, बल्कि विश्वास और नेतृत्व की छवि भी अहम होती है।

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