गुजरात के अरवल्ली जिले में सोमवार देर शाम ऐसा दिल दहला देने वाला हादसा हुआ, जिसने पूरे प्रदेश को हिला दिया। मोडासा के राणासैयद चौक के पास एक तेज रफ्तार से गुजर रही एंबुलेंस अचानक आग के गोले में बदल गई। यह एंबुलेंस एक दिन के नवजात शिशु को अहमदाबाद ले जा रही थी, लेकिन चंद मिनटों में हालात ऐसे बिगड़े कि भीतर बैठे डॉक्टर, नर्स, नवजात और बच्चे के पिता तक को बाहर निकलने का मौका नहीं मिला। लपटें इतनी तेज थीं कि कुछ ही मिनटों में पूरा वाहन धधक उठा और एंबुलेंस बचाने का काम करने वाली टीम खुद बचाव की मोहताज बन गई।
देखते-ही-देखते एंबुलेंस की खिड़कियां फटने लगीं और अंदर बैठे लोग चीखते रहे, लेकिन आग की लपटों ने सभी रास्ते बंद कर दिए। ड्राइवर और एक रिश्तेदार किसी तरह कूदकर बाहर निकले, लेकिन बाकी लोग अंदर ही फंस गए। यह दृश्य इतना भयावह था कि मौके पर मौजूद लोग भी कुछ पल के लिए स्तब्ध रह गए। सैकड़ों की भीड़ जमा हो गई, लेकिन आग की गर्मी इतनी थी कि कोई पास तक पहुंचने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
अचानक भड़की आग और अंदर फंसी जिंदगियां—क्या था असली कारण?
घटना के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठ रहा है कि चलती एंबुलेंस में अचानक ऐसी भीषण आग कैसे लग गई। यह एंबुलेंस अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल की थी और मोडासा मार्ग पर सामान्य रफ्तार से आगे बढ़ रही थी। तभी चालक ने अचानक इंजन के पास से चिंगारियां उठती देखीं। इससे पहले कि वह वाहन को रोक पाता, आग ने पूरे फ्रंट हिस्से को अपनी चपेट में ले लिया।
ड्राइवर और आगे बैठे रिश्तेदार ने तुरंत दरवाजा खोलकर बाहर छलांग लगा दी, लेकिन पीछे का हिस्सा कुछ ही सेकंड में जल उठा। नवजात को लेकर आई नर्स और डॉक्टर पीछे बैठे थे, जहां तक आग तेज़ी से फैल चुकी थी। नवजात के पिता ने भी दरवाजा खोलने की कोशिश की, मगर धुआं इतना भर चुका था कि उनका दम घुटने लगा। वही कुछ मिनट, जो किसी भी बचाव के लिए सबसे अहम होते हैं, इस एंबुलेंस में कयामत बनकर आए।
फायर ब्रिगेड के पहुंचने तक वाहन लगभग पूरी तरह जल चुका था। प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट या इंजन फेल्योर को कारण माना जा रहा है, लेकिन यह भी सवाल है कि मेडिकल एंबुलेंस जैसी गाड़ी में इतना बड़ा तकनीकी दोष कैसे हो गया। क्या उपकरण अधिक लोड में थे? क्या वायरिंग ओवरहीट हुई? या कहीं कोई मेंटेनेंस की चूक थी? पुलिस ने इन सभी पहलुओं पर जांच शुरू कर दी है।
डॉक्टर और नर्स की मौत से चिकित्सा जगत में मातम
हादसे में अपनी जान गंवाने वालों में 22 वर्षीय नर्स भाविकाबेन रमणभाई मनात और 35 वर्षीय डॉक्टर राज शांतिलाल रेंटिया शामिल थे। दोनों अहमदाबाद के एक अस्पताल में कार्यरत थे और नवजात को सुरक्षित लेकर जाने की जिम्मेदारी निभा रहे थे। भाविका अपनी नौकरी में सिर्फ दो साल पुरानी थीं और परिवार के सपने अभी बस शुरू ही हुए थे। वहीं डॉक्टर राज रेंटिया अपने गांव में भी सम्मानित नाम थे।
नवजात, जिसकी जिंदगी बचाने के लिए यह एंबुलेंस अहमदाबाद जा रही थी, वह भी आग का शिकार हो गया। बच्चे के पिता, जो आग में झुलस गए, अस्पताल में भर्ती हैं, जबकि उनका परिवार सदमे में है। अस्पताल स्टाफ भी रो-रोकर बेहाल है, क्योंकि यह हादसा सिर्फ एक परिवार का नहीं, बल्कि एक पूरे मेडिकल समुदाय का दर्द बन गया है।
इस त्रासदी ने उस कड़वी सच्चाई को फिर सामने रख दिया है कि कभी-कभी जिंदगी बचाने वाला सिस्टम ही जान लेने वाला बन जाता है। एंबुलेंस जैसे भरोसेमंद साधन में सुरक्षा की खामियों का खुलासा इस घटना ने बेहद कठोर तरीके से कर दिया है।
मोडासा में दहशत का माहौल
मोडासा के शांत इलाके में हुए इस अग्निकांड ने न केवल स्थानीय लोगों को झकझोर दिया बल्कि एंबुलेंस संचालन और सुरक्षा मानकों को लेकर भी गंभीर चिंताएं खड़ी कर दीं। घटना का वीडियो सामने आने के बाद लोग पूछ रहे हैं—क्या मेडिकल वाहनों की समय-समय पर जांच की जाती है? क्या जीवनरक्षक वाहनों के लिए सुरक्षा प्रोटोकॉल पर्याप्त हैं? क्या सरकारी या निजी एंबुलेंस में आग बुझाने के उपकरण अनिवार्य हैं?
स्थानीय प्रशासन ने जांच का भरोसा दिलाया है, पर यह भी सच है कि इस हादसे ने राज्य भर में एंबुलेंस की सुरक्षा व्यवस्था की वास्तविकता को उजागर कर दिया है। कई ग्रामीण क्षेत्रों में पुरानी और तकनीकी रूप से कमजोर एंबुलेंस का उपयोग होता है, जहां अक्सर हाई लोड, खराब वायरिंग या मेंटेनेंस की कमी जैसी समस्याएं मिलती रही हैं।
यह हादसा आने वाले समय में एंबुलेंस सुरक्षा नियमों के पुनर्मूल्यांकन को मजबूर कर सकता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि बदलाव अक्सर तब आते हैं जब किसी त्रासदी की कीमत पहले ही कई परिवार चुका चुके होते हैं।
