छत्तीसगढ़–आंध्र प्रदेश की सीमा पर मंगलवार सुबह ऐसा कुछ हुआ, जिसकी भनक तक आम लोगों को नहीं लगी। सुरक्षा एजेंसियों ने इसे “ऑपरेशन स्टील नेट” का नाम दिया था और बेहद गोपनीय रूप से काम किया जा रहा था। शुरुआती घंटों में किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि जिस विशेष इनपुट के आधार पर जवान घने जंगलों में उतरे हैं, वह देश के सबसे कुख्यात नक्सली कमांडर Hidma Encounter का निर्णायक मोड़ साबित होगा। अल्लूरी सीताराम जिले के मरेडपल्ली इलाके में तड़के ही जवानों ने मूवमेंट पकड़ ली थी। यह वही इलाका है जहां आए दिन नक्सलियों की आवाजाही की रिपोर्ट मिलती रही है। लेकिन इस बार निशाना एक ऐसा नाम था, जिसकी तलाश कई राज्यों की यूनिटें वर्षों से कर रही थीं—हिडमा, यानी डी. हिडमा, जो नक्सल संगठन के सबसे खतरनाक और आक्रामक चेहरों में गिना जाता था।
मौके पर मौजूद टीमों के मुताबिक, हिडमा के दस्ते की तरफ से हलचल रात के दूसरे पहर से ही बढ़ने लगी थी। घना जंगल, मुश्किल रास्ते, और लगातार बदलती नक्सली तैनाती ने स्थिति को बेहद जटिल बना दिया। इसके बावजूद सुरक्षा बलों ने सावधानी में कोई कमी नहीं छोड़ी थी। बड़ी बात यह थी कि हिडमा जैसे मोस्ट वांटेड नक्सली को घेरना आसान नहीं था, क्योंकि वह लोकेशन लगातार बदलता था। लेकिन इस बार इनपुट इतने सटीक थे कि ऑपरेशन को रोका नहीं गया।
तड़के हुई मुठभेड़—IG सुंदरराज की पुष्टि के बाद खत्म हुई अटकलें
सुबह लगभग 6 बजे के आसपास सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच पहली गोलीबारी की आवाजें सुनी गईं। जवानों ने तुरंत पोजीशन ले ली और करीब आधे घंटे तक लगातार फायरिंग चलती रही। इस दौरान Hidma Encounter की दिशा साफ होने लगी, क्योंकि सुरक्षा एजेंसियों ने दावे के साथ कहा था कि हिडमा खुद इस दस्ता मूवमेंट को लीड कर रहा है। हालांकि, आधिकारिक पुष्टि के बिना कोई भी अधिकारी इस पर खुलकर बात नहीं कर रहा था।
मुठभेड़ खत्म होने के बाद तलाशी अभियान शुरू हुआ, जिसके दौरान एक बड़े नक्सली की लाश बरामद हुई। शुरुआत में इस पर संशय था कि क्या यह वास्तव में हिडमा है, या फिर किसी अन्य वरिष्ठ कमांडर का शव है। लेकिन देर नहीं लगी—IG सुंदरराज पी ने सामने आकर पुष्टि कर दी कि मारे गए नक्सली की पहचान हिडमा के रूप में हो चुकी है।
यह वही हिडमा था, जिसके सिर पर 1 करोड़ रुपये का इनाम था और जिसने छत्तीसगढ़-सुकमा क्षेत्र में कई बड़े हमलों की अगुवाई की थी। उसकी रणनीति, उसकी क्रूरता और उसके संगठनात्मक नेटवर्क ने सुरक्षा बलों के लिए लंबे समय से गंभीर चुनौती पैदा की हुई थी। इसलिए इस Hidma Encounter को सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी सफलता माना जा रहा है।
कौन था हिडमा? क्यों था इतना खतरनाक?
हिडमा सिर्फ एक साधारण नक्सली कमांडर नहीं था। वह CPI (Maoist) की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर-1 का प्रमुख कमांडर था और संगठित हमलों का मास्टरमाइंड माना जाता था। उसकी उम्र भले करीब 40 वर्ष के आसपास बताई जाती थी, लेकिन उसकी पकड़ और उसका प्रभाव बस्तर से लेकर सीमावर्ती जिलों तक फैला हुआ था।
पिछले एक दशक में जिन भी बड़े हमलों में सुरक्षा बलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा, उनमें हिडमा की भूमिका प्रमुख रही। ताड़मेटला हमला, बुर्कापाल हमला और सुकमा के कई अन्य ऑपरेशनों में उसका नाम सामने आता रहा। उसकी एक और खासियत यह थी कि वह कभी खुलकर सामने नहीं आता था। उसके मूवमेंट, उसके ठिकाने और उसके फैसले पूरी तरह गुप्त रखे जाते थे। इसी कारण Hidma Encounter सुरक्षा बलों की प्लानिंग और इंटरसेप्शन क्षमता की सफलता माना जा रहा है।
विशेष तौर पर यह भी बताया जाता है कि हिडमा अपने दस्ते के साथ बेहद सटीक तरीके से छिपे रहने और गश्त चलाने की रणनीति अपनाता था। वह जवानों पर घात लगाकर हमला करने में माहिर था। उसकी ताकत यह भी थी कि वह जंगल के हर मोड़, हर खाई, हर रास्ते से परिचित था, और इसी का इस्तेमाल वह सुरक्षा बलों को चकमा देने के लिए करता था।
सुरक्षा एजेंसियां और सतर्क
हिडमा के मारे जाने के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने राहत की सांस जरूर ली है, लेकिन यह भी कहा जा रहा है कि संगठन का कोर अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। क्योंकि हिडमा के साथ कई और सक्रिय कमांडर भी काम करते थे, जो अब नई रणनीति बना सकते हैं। IG सुंदरराज के अनुसार, ऑपरेशन क्षेत्र में अभी भी सर्च जारी है और सुरक्षा बलों को आशंका है कि हिडमा का दस्ता आसपास ही फैला हुआ हो सकता है।
स्थानीय इलाकों में भी हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है, ताकि किसी भी प्रकार की प्रतिशोधी कार्रवाई को रोका जा सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि Hidma Encounter नक्सल नेटवर्क के लिए मनोवैज्ञानिक स्तर पर बेहद बड़ी चोट है। यह पहली बार है जब इतने बड़े इनामी और रणनीतिक कमांडर का अंत ऑपरेशन के बीच में हुआ है। इससे सुरक्षा एजेंसियों को न सिर्फ भरोसा मिला है, बल्कि आगे की योजनाओं के लिए भी महत्वपूर्ण संकेत मिले हैं।
सुरक्षा बलों का कहना है कि आने वाले महीनों में नक्सल मूवमेंट पर और कड़ी निगरानी रखी जाएगी। नए तकनीकी इनपुट, ड्रोन सर्विलांस, और विशेष टास्क टीमों को फिर से अपडेट किया जा रहा है, ताकि किसी भी तरह की बड़े हमले की संभावना को पहले ही रोका जा सके।
