नेपाल में 8 सितंबर को शुरू हुए ‘Gen-Z’ विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे गए दर्जनों युवाओं की मौत के पीछे अब एक नया सवाल खड़ा हो गया है—आख़िर फायरिंग का आदेश किसने दिया? पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि उनकी सरकार ने “कभी भी सीधे गोली चलाने का आदेश नहीं दिया था”। उन्होंने यह भी कहा कि उस दिन पुलिस के पास ऑटोमैटिक हथियार** थे ही नहीं, जिससे हिंसा की जांच की मांग को बल मिला है।
नेपाल पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार, अब तक प्रदर्शन में कुल 72 मौतों की पुष्टि हुई है, जिनमें 19 लोग मौके पर गोली लगने से मारे गए थे। कई मौतें आगजनी और भगदड़ की वजह से हुईं। ओली ने यह भी दावा किया कि हिंसक घटनाओं के पीछे कुछ “षड्यंत्रकारी तत्व” शामिल थे, जिन्होंने जानबूझकर इस आंदोलन में घुसपैठ की और माहौल को भड़काया। उन्होंने इसे एक **राजनीतिक और प्रशासनिक तंत्र को अस्थिर करने की कोशिश** बताया है।
ओली का खुद का घर भी भक्तपुर के बालकोट इलाके में आगजनी की चपेट में आ चुका है। इस हिंसा के बाद उन्होंने 9 सितंबर को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वर्तमान में वे गुंडू इलाके में किराए के मकान में रह रहे हैं और सेना की सुरक्षा छोड़ चुके हैं। नेपाल की अंतरिम सरकार अब पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की के नेतृत्व में कार्य कर रही है, जिसे आगामी 5 मार्च 2026 को संसदीय चुनाव कराने का दायित्व सौंपा गया है। जनता अब जवाब चाहती है—क्या यह केवल सुरक्षा चूक थी या सत्ता के गलियारों में रची गई कोई गहरी साजिश?