उत्तराखंड और दिल्ली की यह जोड़ी न केवल प्रेम बल्कि साहस और हौसले की मिसाल भी है। दिल्ली की गौतम कॉलोनी निवासी श्वेता (32) ने बचपन में एक बीमारी के कारण अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन यह अंधेरा उनके सपनों को रोक नहीं पाया। श्वेता का ट्रैकिंग और पर्वतारोहण का जुनून किसी भी चुनौती से कम नहीं था। दिव्यांग होने के बावजूद उन्होंने ऊंची चोटियों को फतह करने का सपना देखा। हालांकि उन्हें शुरुआती दौर में कोई साथ नहीं मिला और प्रशिक्षण भी सीमित था, फिर भी उनके हौसले ने उन्हें कभी पीछे नहीं हटने दिया।
सपने को किया साकार
श्वेता की मुलाकात देहरादून के क्लेमेंटटाउन निवासी पर्वतारोही अंकित (33) से हुई। श्वेता ने उन्हें अपने सपनों के बारे में बताया, और अंकित ने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने श्वेता को पहले छोटे-छोटे ट्रैक और पर्वतारोहण का प्रशिक्षण दिया। धीरे-धीरे उनकी यात्रा कठिन होती गई और बीती 17 जुलाई को श्वेता ने जोंगो चोटी को फतह कर पहली दिव्यांग महिला पर्वतारोही का रिकॉर्ड अपने नाम किया। यह उनके हौसले और मेहनत का परिणाम था।
किलिमंजारो सगाई और ऐतिहासिक उपलब्धि
जुलाई में जोंगो चोटी फतह करने के बाद, श्वेता और अंकित ने 19 सितंबर को किलिमंजारो चोटी को फतह किया। इस दौरान उन्होंने अपनी सगाई भी कर ली। यह न केवल रोमांचक था बल्कि भारतीय पर्वतारोहियों के इतिहास में पहली बार ऐसा किया गया। ग्लेशियरों, बर्फीले रास्तों और कठिन मौसम के बीच उन्होंने एक-दूसरे का हाथ थामा और अपने प्रेम का प्रतीक बना लिया। यह कदम साहस, प्रेम और आत्मविश्वास का अद्भुत उदाहरण बन गया।
त्रियुगीनारायण में बंधा प्रेम का बंधन
सभी चुनौतियों और रोमांच के बाद, यह जोड़ी 2 दिसंबर को उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव-पार्वती विवाह स्थल त्रियुगीनारायण में विवाह बंधन में बंध गई। यह कहानी केवल रोमांचक प्रेमकहानी नहीं बल्कि प्रेरक मिसाल भी है कि अगर हौसला और मेहनत हो तो कोई भी सपना असंभव नहीं। श्वेता और अंकित ने दिखा दिया कि शारीरिक सीमाओं को पार कर और कठिन रास्तों को पार करते हुए भी व्यक्ति अपने लक्ष्य और प्रेम दोनों को साकार कर सकता है। यह जोड़ी युवाओं और पर्वतारोहियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गई है।
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