बॉलीवुड की ‘क्वीन’ और हिमाचल प्रदेश के मंडी से भारतीय जनता पार्टी की सांसद कंगना रनौत के खाते में एक और बड़ी उपलब्धि जुड़ गई है। केंद्र सरकार ने कंगना रनौत को संसदीय ‘हिंदी सलाहकार समिति’ का सदस्य नियुक्त किया है। यह नियुक्ति न केवल उनके राजनीतिक कद को दर्शाती है, बल्कि भाषाई गौरव के प्रति उनके समर्पण को भी मान्यता देती है। कंगना रनौत हमेशा से ही सार्वजनिक मंचों पर हिंदी भाषा के प्रयोग और भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने की वकालत करती रही हैं। अब आधिकारिक तौर पर इस समिति का हिस्सा बनने के बाद, वे सरकार के विभिन्न मंत्रालयों में हिंदी के बढ़ते उपयोग और इसके मानकीकरण को लेकर अपनी महत्वपूर्ण राय साझा करेंगी।
समिति का उद्देश्य और कंगना की अहम भूमिका
हिंदी सलाहकार समिति का मुख्य कार्य केंद्र सरकार के मंत्रालयों में राजभाषा हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देना और उससे जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना होता है। इसमें सांसदों, भाषाविदों और प्रतिष्ठित नागरिकों को शामिल किया जाता है ताकि सरकारी कामकाज में हिंदी की पैठ को सरल और प्रभावी बनाया जा सके। कंगना रनौत की नियुक्ति इस लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि वे युवा पीढ़ी और फिल्म जगत में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व हैं। समिति के सदस्य के रूप में, वे अब बैठकों में भाग लेंगी और मंत्रालयों को यह सुझाव देंगी कि कैसे दैनिक प्रशासनिक कार्यों में हिंदी को अधिक सुलभ और अनिवार्य बनाया जा सकता है।
हिंदी प्रेम और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मिला प्रतिफल
कंगना रनौत ने अपने अभिनय करियर के दौरान भी कई बार इस बात पर जोर दिया है कि भारतीय कलाकारों को अपनी मातृभाषा में बोलने में गर्व महसूस करना चाहिए। उन्होंने अक्सर अंग्रेजी के वर्चस्व को चुनौती दी है और हिंदी भाषी क्षेत्रों के दर्शकों के साथ एक सीधा जुड़ाव बनाया है। राजनीति में आने के बाद, उन्होंने अपनी रैलियों और संसद में दिए गए भाषणों में भी शुद्ध और प्रभावशाली हिंदी का प्रयोग किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने उनके इसी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ और भाषा के प्रति उनके प्रेम को देखते हुए उन्हें इस महत्वपूर्ण समिति में जगह दी है। यह नियुक्ति उनके संसदीय करियर को एक नई दिशा प्रदान करेगी।
विपक्ष की प्रतिक्रिया और भविष्य की चुनौतियां
जैसे ही कंगना रनौत की नियुक्ति की खबर सामने आई, सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। जहां उनके प्रशंसक इसे एक सही फैसला बता रहे हैं, वहीं विपक्ष के कुछ नेताओं ने इस पर सवाल भी उठाए हैं। हालांकि, कंगना के लिए असली चुनौती समिति के कामकाज को धरातल पर उतारने की होगी। हिंदी को केवल कागजों तक सीमित न रखकर उसे आधुनिक तकनीक, न्यायपालिका और उच्च शिक्षा का हिस्सा बनाना एक बड़ा लक्ष्य है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कंगना रनौत अपनी इस नई जिम्मेदारी के जरिए राजभाषा हिंदी के गौरव को कितनी ऊंचाई तक ले जाती हैं और उनके सुझाव सरकारी नीतियों में कितना बदलाव लाते हैं।