कभी पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने जिस तालिबान को जन्म देकर अफगानिस्तान में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की थी, आज वही तालिबान पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। यह वही तालिबान है जिसने 1990 के दशक में अफगानिस्तान पर कब्जा किया था और तब पाकिस्तान ने उसे हर तरह की सहायता दी — चाहे हथियार हों, पैसे या ट्रेनिंग। लेकिन अब हालात पलट चुके हैं। सीमा पार से आने वाली गोलियां अब पाकिस्तान की सेना पर बरस रही हैं।
तालिबान और पाकिस्तान के बीच दरार तब गहराई जब अफगानिस्तान में अमेरिकी फौज के हटने के बाद तालिबान सरकार ने काबुल में अपनी सत्ता स्थापित की। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगान तालिबान उसके कहने पर चलेगा, लेकिन हुआ इसका उल्टा। तालिबान ने पाकिस्तान की सीमा पर सक्रिय टीटीपी (Tehrik-e-Taliban Pakistan) को शरण देना शुरू कर दिया। यही संगठन अब पाकिस्तान की सेना पर हमले कर रहा है।
तालिबान के दो चेहरे — अफगान और पाकिस्तानी
यह समझना जरूरी है कि तालिबान एक नहीं, दो रूपों में काम करता है। अफगान तालिबान, जो काबुल में सत्ता चला रहा है, और पाकिस्तानी तालिबान (TTP), जो पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। पहले दोनों का लक्ष्य एक था — अमेरिकी फौज को अफगानिस्तान से बाहर करना। लेकिन अब अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी तालिबान को खुला समर्थन देकर इस रिश्ते को दुश्मनी में बदल दिया है। पाकिस्तान बार-बार काबुल सरकार से कह चुका है कि वह TTP के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन तालिबान की सरकार ने हर बार इससे इंकार किया है।
किसके पास कितनी ताकत?
पाकिस्तान सेना के पास लगभग 6,40,000 सक्रिय सैनिक और 5 लाख रिजर्व फोर्स है। इनके पास आधुनिक फाइटर जेट्स (JF-17, F-16), आर्टिलरी गन, ड्रोन और परमाणु हथियार तक हैं। दूसरी ओर, तालिबान के पास अनुमानित 80,000 से 1 लाख लड़ाके हैं। अमेरिकी सेना के पीछे छोड़ गए हजारों हथियार, ह्यूमवी, नाइट विजन डिवाइस, और रॉकेट लॉन्चर अब उनके पास हैं।
भले ही पाकिस्तान की सेना तकनीकी रूप से बहुत आगे है, लेकिन तालिबान का फायदा है — भूगोल और गुरिल्ला युद्ध कौशल। वे पहाड़ी इलाकों में छिपकर हमले करते हैं, जिससे पाकिस्तान की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
2024 से 2025 के बीच पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में 300 से ज्यादा आतंकी हमले हुए हैं, जिनमें करीब 500 सैनिक मारे गए। इन हमलों की जिम्मेदारी ज्यादातर TTP ने ली है। पाकिस्तानी सेना ने जवाबी कार्रवाई में दर्जनों आतंकी ठिकाने तबाह करने का दावा किया, लेकिन सीमावर्ती इलाकों में हालात अब भी तनावपूर्ण हैं।
पाकिस्तान के लिए मुश्किल यह है कि तालिबान को खत्म करने का मतलब है अपनी ही “पूर्व संपत्ति” पर हमला करना। दशकों तक उसने तालिबान को अफगानिस्तान में “रणनीतिक गहराई” के तौर पर इस्तेमाल किया था। अब वही ताकत पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है। विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान ने ‘आतंक की फसल बोई थी, जो अब बम बनकर फट रही है।’
अफगान तालिबान की भूमिका पर बढ़ते सवाल
काबुल में सत्तारूढ़ तालिबान सरकार खुद को “शांति समर्थक” बताती है, लेकिन पाकिस्तान को उसके शब्दों से नहीं, कदमों से परेशानी है। TTP के कई कमांडर अफगानिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। पाकिस्तान ने कई बार सीमावर्ती इलाकों में एयर स्ट्राइक कर इन आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, लेकिन अफगानिस्तान की सरकार ने हर बार इसका विरोध किया। इससे दोनों देशों के रिश्ते अब बेहद तल्ख हो चुके हैं।
पाकिस्तान अब सीमित सैन्य
ऑपरेशन की तैयारी में है। हाल में पाक रक्षा मंत्री ने बयान दिया था कि “अगर अफगानिस्तान हमारी सीमा पर हमले रोकने में विफल रहता है, तो हम अपने लोगों की सुरक्षा के लिए हर कदम उठाएंगे।” यह इशारा इस बात का है कि आने वाले समय में पाकिस्तान सीमा पार ड्रोन या एयरस्ट्राइक बढ़ा सकता है।
