पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के रेजीनगर इलाके में शनिवार, 6 दिसंबर 2025 को TMC से निलंबित विधायक हुमायूं कबीर ने कड़ी सुरक्षा के बीच एक मस्जिद की नींव रखी। विवाद इसलिए बढ़ा क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि यह मस्जिद “बाबरी मस्जिद की तर्ज पर” बनाई जा रही है। इस दावे ने इलाके के राजनीतिक और सामाजिक माहौल में गर्मी ला दी।
कार्यक्रम के दौरान बड़ी संख्या में समर्थक मौजूद थे और मस्जिद की नींव रखने को लेकर माहौल बेहद उत्साहित था। लेकिन जैसे ही इस घटना की खबर सामने आई, विपक्षी दलों और धार्मिक संगठनों ने इसे सीधे-सीधे राजनीतिक और साम्प्रदायिक संदेश देने की कोशिश बताया। रेजीनगर एक संवेदनशील क्षेत्र माना जाता है, इसलिए इस कदम का प्रभाव पूरे जिले में महसूस किया जा रहा है।
VHP का ने दिया कड़ा बयान
घटना पर सबसे तीखी प्रतिक्रिया विश्व हिन्दू परिषद (VHP) की ओर से सामने आई। VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने हुमायूं कबीर पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि यदि बाबरी नाम की आड़ लेकर कहीं भी हिंदू समुदाय पर हमला या तनाव पैदा किया गया, तो उसकी जिम्मेदारी सीधे-सीधे हुमायूं कबीर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राज्य प्रशासन पर होगी।
बंसल ने अपने बयान में बेहद तीखी भाषा का प्रयोग किया। उन्होंने कहा “हुमायूं कबीर में बाबर का रक्त तो नहीं, लेकिन लगता है कि उस विदेशी आक्रांता की आत्मा उसमें उतर आई है। वही आत्मा उसे बाबरी मस्जिद बनाने की जिद करा रही है।”
इसके साथ उन्होंने आरोप लगाया कि कबीर जैसे नेता इस तरह के मुद्दों को हवा देकर “कट्टरपंथी वोट बैंक” को साधने और अपने राजनीतिक भविष्य को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। VHP का आरोप और भी गंभीर था—बंसल ने कहा कि ऐसे कदम लेने के पीछे विदेशी फंडिंग, पेट्रो-डॉलर और जकात की राशि जुटाने का भी मकसद छिपा हो सकता है। उनके अनुसार, यह कदम सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ सकता है और राज्य में तनाव पैदा करने की साजिश जैसा लगता है।
बंगाल में चुनावी हवा का असर
पश्चिम बंगाल में चुनाव नजदीक आते ही धार्मिक मुद्दे लगातार सुर्खियों में आने लगे हैं। हुमायूं कबीर का यह कदम ऐसे समय में आया है जब शासन और विपक्ष दोनों ही संवेदनशील धार्मिक प्रतीकों को लेकर एक-दूसरे पर हमले कर रहे हैं। कबीर जैसे निलंबित नेताओं के लिए ऐसे कदम खुद को सुर्खियों में लाने का तरीका हो सकते हैं। TMC से निलंबित होने के बाद कबीर पहले ही पार्टी से दूर चल रहे हैं और अब यह कदम उनके लिए राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश माना जा रहा है।
दूसरी ओर, BJP और VHP जैसे संगठन इस मुद्दे को कानून-व्यवस्था और धार्मिक पहचान के संकट के रूप में पेश कर रहे हैं। दोनों पक्षों के बयान ने माहौल को और गर्म कर दिया है। मुर्शिदाबाद जैसे जिले, जहां धार्मिक संतुलन बेहद नाजुक है, वहां ऐसे कदम न सिर्फ राजनीतिक तनाव बढ़ाते हैं बल्कि स्थानीय लोगों में असुरक्षा भी पैदा करते हैं।
तनाव को लेकर प्रशासन अलर्ट
नींव रखने के बाद से प्रशासन लगातार इलाके की निगरानी कर रहा है। पुलिस बल बढ़ा दिया गया है और रेजीनगर में सुरक्षा व्यवस्था को सख्त कर दिया गया है। हालांकि राज्य सरकार ने अभी तक इस विवाद पर कोई औपचारिक बयान जारी नहीं किया है, यदि हालात बिगड़ते हैं, तो विपक्ष इसे तुरंत चुनावी मुद्दा बनाकर राज्य सरकार पर निशाना साधेगा। वहीं, कबीर जैसे नेताओं के लिए अब यह चुनौती है कि वे इस कदम का बचाव किस तरह करते हैं, क्योंकि इसका प्रभाव राष्ट्रीय स्तर तक जा सकता है।
मौजूदा परिस्थितियों में सबसे बड़ी जिम्मेदारी प्रशासन पर है, जो किसी भी प्रकार का साम्प्रदायिक तनाव फैलने नहीं देना चाहता। यह देखना भी महत्वपूर्ण होगा कि इस विवाद पर स्थानीय मुस्लिम संगठनों या नागरिक समूहों की क्या प्रतिक्रिया सामने आती है—क्योंकि कई मुस्लिम पक्षकार पहले ही कह चुके हैं कि विवादित नामों और प्रतीकों के आधार पर धार्मिक ढांचे बनाना समाज के हित में नहीं है। अब तमाम नजरें इस बात पर टिकी हैं कि आने वाले दिनों में राज्य सरकार, चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन इस मुद्दे को किस तरह संभालते हैं।
