इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यदि प्रेम संबंध वर्षों तक सहमति से चलता रहा हो, तो उसे दुष्कर्म का मामला नहीं बनाया जा सकता। यह फैसला महोबा जिले की एक महिला की उस याचिका पर आया जिसमें उसने शादी का झांसा देकर संबंध बनाने का आरोप लगाया था।
शादी का झूठा वादा – क्या यह रेप है? कोर्ट ने खींची कानूनी सीमा
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि महिला को यह ज्ञात था कि सामाजिक कारणों से विवाह संभव नहीं है, फिर भी उसने वर्षों तक संबंध बनाए रखे, तो उसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता। इस फैसले से प्रेम संबंधों में सहमति की कानूनी व्याख्या और स्पष्ट हुई है।
लिव-इन रिलेशन और सहमति – कानून का नया दृष्टिकोण
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि यदि दोनों पक्ष वयस्क हैं और संबंध आपसी सहमति से हैं, तो बाद में शादी न होने पर इसे आपराधिक मामला नहीं बनाया जा सकता। यह फैसला समाज में बढ़ते लिव-इन या प्रेम संबंधों में कानूनी जटिलताओं को नई दिशा देने वाला माना जा रहा है।
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