कहा जाता है कि आंवला नवमी (अक्षय नवमी) के दिन भगवान विष्णु और शिव जी आंवले के पेड़ में निवास करते हैं। आंवला नवमी के दिन इन दोनों देवता की पूजा का महत्व है। इस बार 21 नवंबर आंवला नवमी पड़ रही है। आंवला नवमी के दिन सभी महिलाएं सुबह जल्दी स्नान कर आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं और जल अर्पित करती हैं। इस दिन आंवले के पेड़ की जड़ में जल के बाद दूध चढ़ाया जाता है। दूध चढाने के बाद पेड़ पर रोली, चावल, हल्दी समेत सभी चीजें चढ़ाकर उसके चारों ओर कच्चा सूत या मौली 7 परिक्रमा करते हुए लपेटा जाता है। ऐसा करने के बाद आंवले के पेड़ के नीचे परिवार के साथ भोजन किया जाता है।
पूजा करते समय इस मंत्र का करें जाप
आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन करें और इस दिन आंवले के पेड़ की जड़ में दूध अवश्य अर्पित करें। इसके बाद पेड़ के चारों तरफ कच्चा धागा बांधकर कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करना चाहिए। इसी पेड़ के नीचे भोजन बनाएं और उस भोजन का भोग आंवले के पेड़ को लगाने के बाद पूरे परिवार ग्रहण करें। भोजन करने से पहले वृक्ष के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्ये नमः’ मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों को तर्पण करना चाहिए, साथ ही साथ इस दिन ऊनी वस्त्र व कंबल दान करना बेहद पुण्यदायी माना जाता है।
आंवला के पेड़ के नीचे किया जाता है भोजन
आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे भोजन बनाकर उसी के पेड़ नीचे बैठकर खाने का बहुत ज्यादा महत्व है। माना जाता है की इस दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्डक नामक दैत्य का वध किया था। केवल यही नहीं आंवला नवमी का दिन ही था, जिस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया था।