बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के मतदान के बाद एग्जिट पोल के अनुमानित नतीजों ने राज्य की राजनीति में तूफान ला दिया है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही अपने-अपने दावे कर रहे हैं, लेकिन एग्जिट पोल के रुझान इस बार एक अलग ही तस्वीर दिखा रहे हैं।
जनता ने इस बार मतदान के दौरान कई मुद्दों को ध्यान में रखा — बेरोजगारी, शिक्षा, महंगाई, सड़क और स्वास्थ्य जैसे विषयों पर मतदाताओं ने अपनी राय दी है। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि बिहार की जनता ने इस बार “भावनाओं से नहीं, बल्कि अनुभवों से वोट किया है।”
इस बार के एग्जिट पोल में मुकाबला बेहद नजदीकी नजर आ रहा है। किसी एक दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत का अनुमान नहीं दिया गया है। राजनीतिक रुझानों के आधार पर अनुमानित आंकड़े इस प्रकार हैं (कुल 243 सीटों पर):
सत्ताधारी गठबंधन: 108 से 122 सीटों के बीच
मुख्य विपक्षी गठबंधन: 100 से 114 सीटों के बीच
तीसरा मोर्चा व निर्दलीय: 10 से 15 सीटें
इन आंकड़ों से साफ है कि मुकाबला बेहद रोमांचक स्थिति में है। सत्ता पक्ष जहां उम्मीद कर रहा है कि अंतिम चरण के मतदान में उन्हें निर्णायक बढ़त मिलेगी, वहीं विपक्ष का दावा है कि इस बार जनता ने “बदलाव के पक्ष में वोट किया है।”
युवा और पहली बार वोट करने वालों ने बदली हवा
बिहार की राजनीति में इस बार युवाओं की भूमिका बेहद अहम रही। राज्य में लगभग 25% मतदाता ऐसे हैं जिन्होंने पहली बार वोट डाला है। युवा वोटरों ने इस बार रोजगार, शिक्षा, और उद्योगों के अवसरों को सबसे बड़ा मुद्दा बताया। इन वोटों का बड़ा हिस्सा विपक्ष की ओर झुकता दिख रहा है।
वहीं सत्ता पक्ष को ग्रामीण इलाकों और वरिष्ठ मतदाताओं का समर्थन मिलता दिखा है। इस संतुलन ने पूरे एग्जिट पोल समीकरण को जटिल बना दिया है।कई राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर युवा वर्ग ने निर्णायक रूप से किसी एक तरफ रुख किया, तो नतीजों में भारी उलटफेर संभव है।
बिहार की राजनीति में अब तक जातीय समीकरण सबसे बड़ा फैक्टर माना जाता था, लेकिन इस बार का एग्जिट पोल कुछ और इशारा कर रहा है। कई इलाकों में पारंपरिक वोट बैंक टूटते नजर आए हैं। सामान्य और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं ने इस बार जातीय पहचान से हटकर विकास और रोजगार को प्राथमिकता दी है।
विशेष रूप से मध्य बिहार और सीमांचल के क्षेत्रों में वोटिंग पैटर्न में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। इस बदलाव का असर कई दिग्गज नेताओं की सीटों पर भी दिखाई दे सकता है।
अगर ये रुझान असली नतीजों में भी कायम रहते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में नई सोच की शुरुआत होगी।
सत्ता की कुर्सी पर किसका दावा मजबूत?
एग्जिट पोल के अनुमानों ने सत्ता के दोनों प्रमुख गठबंधनों को चिंता में डाल दिया है।
सत्ताधारी खेमे को भरोसा है कि अंतिम परिणामों में उन्हें कुछ सीटों पर फायदा मिलेगा, जबकि विपक्ष को विश्वास है कि जनता ने “बदलाव” के नाम पर वोट किया है।
राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि 10 से 12 सीटें ऐसी हैं जहां बहुत मामूली अंतर से परिणाम तय होंगे। ऐसे में नतीजों के दिन कई बड़े नेताओं की किस्मत दांव पर लगी होगी।
साथ ही, अगर किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो “पोस्ट-पोल एलायंस” की राजनीति शुरू हो सकती है। यानी सरकार बनाने की जंग नतीजों के बाद भी जारी रहेगी।
जनता ने किया फैसला, अब इंतज़ार नतीजों का
बिहार की जनता ने अपने मत का प्रयोग कर दिया है और अब बारी है फैसले की।
एग्जिट पोल के इन अनुमानित आंकड़ों ने सभी राजनीतिक दलों को नई रणनीति पर सोचने पर मजबूर कर दिया है।
सत्ता पक्ष जहां अपने विकास कार्यों का हवाला दे रहा है, वहीं विपक्ष इसे “जनता की नाराज़गी” बता रहा है।
अब पूरा राज्य और देश की नज़रें मतगणना वाले दिन पर टिकी हैं, जब यह साफ होगा कि बिहार की जनता ने किसके पक्ष में फैसला सुनाया — क्या मौजूदा सरकार को एक और मौका मिलेगा या फिर सत्ता की कुर्सी किसी और के हिस्से जाएगी?
