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ऑस्ट्रेलिया को दहला देने वाले हमले के बाद क्यों घिर गया उस्मान ख्वाजा का परिवार? मासूम बेटियों तक पहुंची धमकियां

Bondi Beach mass shooting के बाद ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर Usman Khawaja के परिवार को सोशल मीडिया पर धमकियां और नस्लभेदी टिप्पणियां मिलीं। जानिए पूरी घटना, नफरत की सच्चाई और समाज के सामने खड़े सवाल।

ऑस्ट्रेलिया के Bondi Beach पर 14 दिसंबर को हुई भीषण सामूहिक गोलीबारी ने पूरे देश को गहरे सदमे में डाल दिया। सिडनी के इस मशहूर समुद्री तट पर उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब हनुक्का पर्व के दौरान जश्न मना रहे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलाई गईं। इस हमले में 15 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई अन्य गंभीर रूप से घायल हुए। करीब 30 वर्षों में यह ऑस्ट्रेलिया की सबसे भयावह सामूहिक हिंसा की घटनाओं में से एक मानी जा रही है। सुरक्षा एजेंसियों ने इसे सुनियोजित हमला बताया और जांच शुरू की, लेकिन इस घटना के बाद जिस तरह का सामाजिक माहौल बना, उसने एक नई और चिंताजनक बहस को जन्म दे दिया।

हमले के बाद देशभर में शोक सभाएं हुईं, नेताओं ने एकजुटता की अपील की और आम लोगों ने पीड़ितों के प्रति संवेदना जताई। लेकिन इसी बीच सोशल मीडिया पर नफरत, अफवाहों और नस्लभेदी सोच ने भी तेजी से जगह बना ली। इसी नफरत की चपेट में आ गया एक ऐसा परिवार, जिसका इस घटना से कोई लेना-देना नहीं था, लेकिन जिसकी पहचान ही कुछ लोगों के लिए निशाना बन गई।

उस्मान ख्वाजा का परिवार क्यों बना निशाना?

ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट टीम के स्टार बल्लेबाज Usman Khawaja इन दिनों एशेज सीरीज में व्यस्त हैं और मैदान पर देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। लेकिन मैदान के बाहर उनके परिवार को सोशल मीडिया पर भयानक नफरत का सामना करना पड़ा। उस्मान ख्वाजा मुस्लिम समुदाय से आते हैं और इसी पहचान को लेकर कुछ लोगों ने उन्हें और उनके परिवार को इस हमले से जोड़ने की कोशिश की।

ख्वाजा ने सार्वजनिक रूप से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनकी पत्नी रैचेल ख्वाजा ने सोशल मीडिया पर सामने आकर सच्चाई रखी। उन्होंने उन संदेशों के स्क्रीनशॉट साझा किए, जो उन्हें पिछले कुछ दिनों में मिले। इन मैसेजों में न केवल उन्हें, बल्कि उनकी छोटी बेटियों को भी निशाना बनाया गया। कुछ लोगों ने बच्चों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया, जिन्हें पढ़ना भी असहज कर देने वाला है। परिवार को “देश छोड़ने” और “पाकिस्तान वापस जाने” जैसी बातें कही गईं, जबकि कुछ संदेशों में खुली धमकियां तक शामिल थीं।

यह घटना बताती है कि किस तरह किसी एक हिंसक घटना के बाद पूरे समुदाय को दोषी ठहराने की प्रवृत्ति आज भी जिंदा है, चाहे तथ्य कुछ भी हों।

पत्नी रैचेल ख्वाजा का दर्द

रैचेल ख्वाजा ने अपने पोस्ट में लिखा कि यह पहली बार नहीं है, जब उन्हें इस तरह की नफरत झेलनी पड़ी हो। उन्होंने कहा कि उन्होंने सिर्फ “एक छोटा सा नमूना” साझा किया है, जबकि असलियत इससे कहीं ज्यादा डरावनी है। उन्होंने साफ तौर पर बताया कि इस बार नफरत का स्तर कहीं ज्यादा बढ़ गया है और इसका सीधा असर उनके बच्चों पर पड़ा है।

रैचेल ने लिखा कि सबसे ज्यादा दुख इस बात का है कि मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया। उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में बच्चों को इस तरह की सोच का शिकार बनाना बेहद खतरनाक संकेत है। यह सिर्फ एक परिवार की बात नहीं है, बल्कि उस सोच की झलक है, जो किसी भी बड़े हादसे के बाद दोष ढूंढने के लिए धर्म और नस्ल को सबसे आसान रास्ता मान लेती है।

उनकी इस पोस्ट के बाद कई लोगों ने समर्थन में आवाज उठाई और सोशल मीडिया पर एकजुटता दिखाई। कई खेल प्रेमियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों ने कहा कि नफरत के खिलाफ चुप रहना भी एक तरह से उसे बढ़ावा देना है।

नफरत के खिलाफ एकजुटता की अपील और बड़ा सवाल

रैचेल ख्वाजा ने अपने संदेश के अंत में समाज से अपील की कि आज पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है कि लोग एक-दूसरे के साथ खड़े हों। उन्होंने कहा कि चाहे वह यहूदी विरोधी नफरत हो, इस्लामोफोबिया हो या किसी भी तरह का नस्लवाद—हर तरह की नफरत को सिरे से खारिज किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि किसी एक समुदाय को दोषी ठहराने से न तो पीड़ितों को न्याय मिलता है और न ही समाज सुरक्षित बनता है।

बोंडी बीच की घटना ने जहां सुरक्षा व्यवस्था और कट्टरपंथ पर सवाल खड़े किए हैं, वहीं उसके बाद हुई यह सोशल मीडिया नफरत एक और गंभीर समस्या की ओर इशारा करती है। यह मामला सिर्फ उस्मान ख्वाजा के परिवार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि किस तरह डर और गुस्से का इस्तेमाल कर समाज को बांटा जा सकता है। सवाल यह है कि क्या हम ऐसी घटनाओं से सीख लेकर एक-दूसरे को समझने की कोशिश करेंगे, या हर बार किसी नई त्रासदी के बाद नफरत का दायरा और बढ़ता जाएगा।

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