नई दिल्ली। ज्वालामुखी नाम से वैसे हर शख्स परिचित है। धरती पर लगभग 1500 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। धरती में मौजूद ये ज्वालामुखी तो कभी-कभी फटते हैं। लेकिन धरती से लगभग 62.83 करोड़ किलोमीटर दूर एक ऐसा ग्रह है, जिसपर मौजूद 400 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखी रोजाना फटते हैं। इस ग्रह पर लावा की नदियां और नहरें बहती हैं। सौर मंडल का यह सबसे ज्यादा सक्रिय ग्रह है मतलब इसकी जमीन के अंदर हमेशा हलचल होती रहती है। आयो (IO) नाम से इस ग्रह को जाना जाता है। यह सौर मंडल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति का सबसे बड़ा चंद्रमा है। जो बृहस्पति के चारों तरफ 4.23 लाख किलोमीटर की दूरी पर चक्कर काटता रहता है। यह धरती के चांद से थोड़ा ही बड़ा है।
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धरती के 32 घंटों के बराबर आयो का एक दिन होता है। इसकी जमीन की ऊपरी हिस्सा दलदली है। ऐसे भी समझ सकते हैं कि हमेशा बहती रहती है। क्योंकि इसके ऊपर कभी भी कहीं से भी लावे की नदी बहती रहती है। आयो की सतह पर लगातार परिवर्तित होती रहती है। 410 साल पहले गैलीलियो गैलिली ने इस ग्रह की खोज की थी। मतलब 8 जनवरी, 1610 में गैलीलियो गैलिली ने बृहस्पति ग्रह के चारों तरफ आयो के साथ-साथ तीन और चंद्रमाओं की खोज की थी। इनमें आयो, यूरोपा, गैनीमेडे और कैलिस्टो। यहां का तापमान काफी अधिक होने की वजह से इस ग्रह पर जीवन संभव नहीं है।
ज्वालामुखी से निकलने वाले लावे के कारण सल्फर डाइऑक्साइड गैस ग्रह के चारों तरफ घना बादल बना लेता है। कई बार तो सल्फर डाइऑक्साइड का गुबार 200 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में पहुंच जाता है। इस ग्रह के सबसे बड़े ज्वालामुखी को लोकी पटेरा नाम से जानते हैं। इसका विस्तार 202 किलोमीटर तक है। आयो की गर्मी का 25 फीसदी हिस्सा अकेला यही ज्वालामुखी पैदा करता है। इसी के चलते काफी बड़े इलाके में लावा की झीलें बनी हुई हैं। यहां लावा की नदियां बहती रहती हैं।
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