नई दिल्ली। नौकरी पेशा में किसी का तबादला किया जाना प्रक्रिया का हिस्सा होता है। तबादले होते भी रहते हैं, लेकिन कुछ तबादलों पर सवाल इसलिए उठते हैं कि उसका समय गलत होता है। ऐसा ही कुछ दिल्ली हिंसा की सुनवाई कर रहे हाईकोर्ट के जज एस. मुरलीधर के तबादले में देखा जा रहा है। दिल्ली हिंसा की सुनाई के दूसरे दिन ही तबादला हो जाने पर संदेह का होना लाजिमी है, जबकि सरकार के हिसाब से तबादले में पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है। एस. मुरलीधर का तबादला पंजाब—हरियाणा हाईकोर्ट में कर दिया गया है। जज के तबादले पर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर हमला बोला है। इस पर केंद्र सरकार ने इसे रूटीन बताते हुए कांग्रेस पर जानबूझकर राजनीतिक मुद्दा बनाने का आरोप लगाया।
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दिल्ली हिंसा के दौरान मानवाधिकार मामलों के वकील ने मुस्तफाबाद में मरीजों की मुश्किलों को देखते हुए जज को फोन किया था। इसके बाद हाईकोर्ट के जस्टिस एस. मुरलीधर के घर में मंगलवार देर रात 12.30 बजे सुनवाई हुई। कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि वो मरीजों को उपचार के लिए उन्हें दूसरे अस्पताल ले जाने की उचित सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराए। इसके बाद बुधवार दोपहर हाईकोर्ट में जस्टिस एस. मुरलीधर और जस्टिस तलवंत सिंह की बेंच ने नेताओं के भड़काऊ बयान की याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस मुरलीधर की अध्यक्षता वाली बेंच ने भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं के खिलाफ ऐक्शन न लेने पर दिल्ली पुलिस को लताड़ भी लगाई गई।
कोर्ट ने इस मामले में गुरुवार को यह बताने को कहा कि कितनी प्रगति हुई। सुनावाई के दौरान जस्टिस एस. मुरलीधर ने दिल्ली हिंसा पर सख्त रुख अख्तियार करते हुए कहा था कि हम नहीं चाहते कि दिल्ली की हिंसा 1984 के दंगे का रूप ले ले। इसके कुछ ही घंटों बाद उनके तबादले से राजनीतिक उफान पैदा हो गया है। दिल्ली हाईकोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, जस्टिस एस. मुरलीधर ने सितंबर, 1984 में चेन्नै में वकालत शुरू की। इसके बाद वर्ष 1987 में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में वकालत करना शुरू किया।
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मुरलीधर दो बार सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सक्रिय सदस्य भी रह चुके हैं। वह बिना फीस लिए केस लड़ने के लिए भी चर्चित रहे हैं। मुरलीधर भोपाल गैस त्रासदी और नर्मदा बांध पीड़ितों के केस बिना फीस के लडे़ थे। इसके साथ ही जस्टिस मुरलीधर अपने कुछ सख्त फैसलों की वजह से भी जाने जाते हैं। वह 2009 में नाज फाउंडेशन के मामले में सुनवाई करने वाली दिल्ली हाईकोर्ट की बेंच में शामिल थे, जिसने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया था।
सज्जन कुमार को को सुनाई थी सजा
जस्टिस मुरलीधर ने वर्ष 2018 में कई सख्त फैसले लिए जिसमें सज्जन कुमार को 1984 में हुए सिख दंगों का दोषी ठहराते हुए उनके खिलाफ फैसला सुनाया था। वर्ष 2018 में ही उन्होंने गौतम नवलखा समेत कई ऐक्टिविस्टों को माओवादियों से संबंध के मामले में जमानत भी दे दी थी।
हाशिमपुरा नरसंहार में पूर्व पुलिसकर्मियों को सुनाई थी सजा
इसके अलावा 2018 में ही जस्टिस मुरलीधर और जस्टिस विनोद गोयल की बेंच ने 1987 में हुए हाशिमपुरा नरसंहार मामले में यूपी पीएसी के 16 पूर्व पुलिसकर्मियों को हत्या, किडनैप, आपराधिक साजिश और सबूतों को मिटाने का दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। पिछले साल दिल्ली में सरकारी जमीन पर बने निजी स्कूलों को फीस बढ़ाने पर रोक लगाने का फैसला भी जस्टिस मुरलीधर की बेंच ने ही सुनाया था।
वकीलों ने तबादले का किया था विरोध
जस्टिस एस. मुरलीधर के तबादले को लेकर बीते सप्ताह भी सवाल उठे थे। इसके विरोध में वकीलों ने 20 फरवरी को प्रदर्शन किया था। दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पास करके उनके ट्रांसफर का विरोध किया और सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम के तबादले के फैसले पर नाराजगी जाहिर की थी। सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 12 फरवरी को जस्टिस एसर. मुरलीधर का ट्रांसफर करने का सुझाव दिया था। इस संबंध में बुधवार को नोटिफिकेशन जारी किया।
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