नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में संपन्न हुई कैबिनेट बैठक में नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन को मंजूरी मिल गई है। इसके साथ-साथ कैबिनेट ने सरोगेसी एमेंडमेंट एक्ट को भी मंजूरी दे दी है। इसके चलते अब सरोगेसी कानून और भी सख्त हो जाएगा। इसके अलावा फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के दो इंस्टीट्यूट को राष्ट्रीय संस्थान का दर्जा देने पर भी निर्णय लिया गया है। कैबिनेट बैठक में नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन को स्वीकृति दे दी गई है। इस मिशन से देश में टेक्सटाइल इंडस्ट्री को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद है। ज्ञात हो कि 1 फरवरी, 2020 को पेश हुए बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल टेक्निकल टेक्सटाइल मिशन की घोषणा की थी।
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हर वर्ष भारत करीब 1600 करोड़ डॉलर (करीब 1.13 लाख करोड़ रुपये) के टेक्निकल टेक्सटाइल इम्पोर्ट करता है। आयात में कटौती के लिए इस मिशन पर 1,480 करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना है। गौरतलब है कि टेक्निकल टेक्सटाइल का इस्तेमाल अलग-अलग सेक्टर में किया जाता है। मेडिकल सेक्टर्स से लेकर एग्रो सेक्टर में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। सही अर्थों में कहें तो टेक्नोलॉजी के मदद से ऐसे प्रोडक्ट बनाए जाते हैं जो उस सेक्टर को बढ़ावा देने में काफी सहायक साबित हो रहे हैं। टेक्सटाइल मंत्री स्मृति ईरानी ने पत्रकारों को बताया कि इस संबंध में उद्योग से कई बार मांग उठी। इसके लिए 1480 करोड़ का आवंटन किया जा चुका है।
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207 टेक्निकल टेक्सटाइल के कोड प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनाए गए हैं। इसके जरिए 50 हज़ार लोगों को स्किल बनाने की व्यवस्था की जाएगी। उन्होंने बताया कि सरोगेसी कानून में बदलाव कुछ किए गए हैं, जिसमें यह अहम बदलाव है। महिला विधवा हो या तलाकशुदा तो उसे भी सरोगेसी का अधिकार है। सरोगेट मदर के मेडिकल कवर को भी बढ़ाया गया है। शादीशुदा कपल बच्चा पैदा करने के लिए किसी महिला की कोख किराए पर ले सकता है इसी को सरोगेसी कहा जाता है। सरोगेसी से बच्चा पैदा करने के पीछे कई कारण होते हैं। जैसे कि अगर कपल के अपने बच्चे नहीं हो रहे हों, महिला की जान को किसी तरह का खतरा हो या फिर कोई महिला बच्चा पैदा न करना चाह रही हो।
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दुनियाभर में फल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भारत है। बावजूद इसके उत्पादन के 10 फीसदी से कम की ही प्रोसेसिंग हो पाती है। जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थ रखरखाव के आभाव में बड़ी मात्रा में खराब जाते हैं। इन सबको देखते हुए सरकार पिछले कुछ वर्षों से ऐसे खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निवेश लाने पर काम कर रही है।