वॉशिंगटन। दुनिया के अधिकत्तर देश कोरोना वायरस की चपेट में है। दुनिया में इस महामारी से मरने वालों की संख्या एक लाख के पार चली गई है तो वहीं लाखों की संख्या में लोग संक्रमित है। दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना से लड़ने के लिए वैक्सीन बनाने में लगे हैं। कुछ देश वैक्सीन बनाने का दावा भी कर चुके हैं लेकिन उनका ट्रायल किया जाना अभी बाकी है। अमेरिका में कोरोना वायरस के मरीजों के इलाज के लिए दवा का क्लीनिकल ट्रायल चल रहा है। इसके तीसरे चरण में सकारात्मक रिजल्ट आए हैं। कंपनी गिलीड साइंसेज ने रेम्डेसिविर नाम की यह दवा बनाई है। डॉक्टरों की एक टीम इसके क्लीनिकल ट्रायल पर नजर बनाए हुए है। बताया जा रहा है इस टीम में भारतीय मूल की एक फिजिशियन भी शामिल हैं।
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कंपनी ने दावा किया है कि शुरुआती नतीजों के अनुसार कोविड-19 के जिन मरीजों को 5 दिन तक रेमेडेसिवीर की खुराक दी गई, उनमें से 50 फीसदी की सेहत में सुधार आया और आधे से अधिक मरीजों को दो हफ्ते के अंदर अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई। दवा के तीसरे दौर के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी की प्रक्रिया में अंतिम चरण के रूप में देखा जा रहा है। ट्रायल पर नजर रख रही टीम में शामिल भारतीय मूल की फिजिशियन अरुणा सुब्रमण्यन ने बताया कि इसके नतीजे उत्साहजनक हैं। जिन मरीजों को 5 दिन तक रेम्डेसिविर की खुराक दी गई, उनकी हालत में उतना ही सुधार हुआ जितना 10 दिन तक खुराक लेने वाले मरीजों में हुआ था। वह स्टैंडफर्ड युनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में एमडी, क्लीनिकल प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन और इम्युनोकंप्रोमाइज्ड होस्ट इनफेक्शस डिजीज विभाग की हेड हैं।
उन्होंने बताया कि अभी और डेटा की जरूरत है लेकिन इन नतीजों से साफ है कि अगर रेम्डेसिविर सुरक्षित और कारगर साबित होती है तो इसका अधिकतम उपयोग कैसे किया जाना है। जबकि दवा कंपनी का मानना है कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इनफेक्शस डिजीजेज कोरोना के इलाज में एंटीवायरल रेम्डेसिविर के इस्तेमाल का अध्ययन कर रहा है और वह इससे निकलकर सामने आ रहे सकारात्मक नतीजों से परिचित हैं। फिलहाल रेम्डेसिविर को अभी तक दुनिया में कहीं भी मंजूरी या लाइसेंस नहीं मिला है। इससे अभी तक यह साबित नहीं हुआ है कि यह दवा कोरोना के इलाज के लिए सुरक्षित या कारगर है।
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